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गजल ... फूल जैसे किसी बच्चे की झलक (वफ़ा नक़वी)

फूल जैसे किसी बच्चे की झलक है मुझ मे,
कितने मासूम ख्यालों की महक है मुझ में !

रोज़ चलता हूँ हजारों किलोमीटर लेकिन,
खत्म होती ही नहीं कैसी सड़क है मुझ में !

मैं उफ़क हूँ मेरा सूरज से है रिश्ता गहरा,
एक दो रंग नही सारी धनक है मुझ में !

वो मुहब्बत वो निगाहें वो छलकते आँसू,
चंद यादों की अभी बाक़ी खनक है मुझ में

चाँद से कह दो हिकारत से ना देखे मुझ को,
माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में !

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Comment by विवेक मिश्र on October 3, 2010 at 6:09pm
/मैं उफ़क हूँ मेरा सूरज से है रिश्ता गहरा,
एक दो रंग नही सारी धनक है मुझ में !/
- भई वाह..!! आपने तो अपनी उफ़क की चादर में पूरा इन्द्रधनुष ही समेट लिया. दाद कुबूल की जाए.
Comment by vineet agarwal on October 2, 2010 at 11:07pm
रोज़ चलता हूँ हजारों किलोमीटर लेकिन,
खत्म होती ही नहीं कैसी सड़क है मुझ में !

चाँद से कह दो हिकारत से ना देखे मुझ को,
माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में

bahut khoob bro...
Comment by आशीष यादव on October 2, 2010 at 6:28am
Behatarin khayalat. Ek umda ghazal. Dad kubul kijiye.
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 1, 2010 at 4:41pm
वो मुहब्बत वो निगाहें वो छलकते आँसू,
चंद यादों की अभी बाक़ी खनक है मुझ में

चाँद से कह दो हिकारत से ना देखे मुझ को,
माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में

आपकी रचना की ये लाइन्स मुझे खिच लाई....बहुत ही खूबसूरत रचना है......ये लाइन्स ही क्या पूरी रचना ही धमाकेदार है...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 1, 2010 at 9:29am
चाँद से कह दो हिकारत से ना देखे मुझ को,
माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में,
बहुत ही खुबसूरत शे'र, माना जुगनू हूँ मगर अपनी चमक है मुझ में........वाह वाह इस ख्यालात को दिल से सलाम ! क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने, जबरदस्त , बधाई और दाद दोनों स्वीकार करें जनाब, उम्मीद करते है कि आगे भी आपकी कलम की धार ऐसे ही देखने को मिलेगी और अन्य रचनाओं पर आपका बहुमूल्य विचार भी |

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