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चश्मे  तो हमने राह में पाये हैं बेशुमार

तेरी ही तिश्नगी में  आये हैं बार- बार

  

 प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

 

 बता गमजदा दिल अब  कैसे ढकें बदन 

 खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार

 

 वादियों में  बुलबुलें अब चहकती नहीं  

  जब दर्द के  गुबार ने तडपाये हैं  चिनार 

 कैसे सुकून पाये 'राज'  इस जहान में   
 नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार

*******.

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Comment by MAHIMA SHREE on May 26, 2012 at 11:20pm

बता गमजदा दिल अब  कैसे ढकें बदन 

 खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार

कैसे सुकून पाये 'राज'  इस जहान में   
नफरतों की आग ने सुखाये हैं आबशार

वाह आदरणीया  राजेश दी .. बहुत गहरी बात .. बधाई आपको

 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2012 at 11:12pm

प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत सुन्दर ...लेकिन फिर भी धोखा ही धोखा ....जमाना  ही .... जय श्री राधे 

भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण  


Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2012 at 11:12pm

प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत सुन्दर ...लेकिन फिर भी धोखा ही धोखा ....जमाना  ही .... जय श्री राधे 

भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण  


Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 26, 2012 at 9:41pm

बता गमजदा दिल अब  कैसे ढकें बदन , खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार॥ बहुत सुंदर रचना राजेश कुमारी जी ! सुंदर और भाव प्रधान रचना के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें!!

 


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Comment by rajesh kumari on May 26, 2012 at 5:25pm

हार्दिक आभार अरुण जी आपकी बात का अगली बार पक्का ध्यान रखूंगी कठिन  शब्द के अर्थ जरूर लिखूंगी | इस बार दो या तीन  ही शब्द कठिन हो सकते  हैं सो अर्थ आपकी रिप्लाई बोक्स  में ही लिख रही हूँ तिश्नगी =प्यास ,पैरहन =लिबास ,आबशार =पानी के झरने 

Comment by Abhinav Arun on May 26, 2012 at 2:53pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी !! बहुत गहरे भाव की रचना | सुन्दर और सार्थक , हार्दिक बधाई आपको !! .. अनुज होने नाते एक बात - अक्सर मुझे भी उर्दू अरबी के शब्द लुभाते हैं पर मैंने महसूस किया  है कि बोलचाल की भाषा में कही गयी रचना का सहज सरल प्रवाह उसे स्थायित्व देता है | कुछ शब्द कठिन लग रहे हैं उनका हिंदी अर्थ देना अच्छा रहेगा |


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Comment by rajesh kumari on May 26, 2012 at 11:13am

बहुत बहुत हार्दिक बधाई आशीष जी 

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 10:07am

भावों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है अल्फाजों मे, और अल्फाजों को सुन्दर शिल्प की पैरहन दी है।
बधाई स्वीकारें


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Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 8:52pm

अविनाश जी आप सही कह रहे हैं न जाने इन दो शब्दों में कैसे गड़बड़ हो गई लिखा तो ठीक ही था ये र मात्र में कहाँ से आ गया 

Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 8:46pm

 वादियों में  बुलबुलें अब चहकती नहीं  

  जब दर्द के गुबार ने तडपाये हैं  चिनार ....Rajesh kumari mam....shandar mukammal gazal....thodi printing ki galtiya dikh rahi hai.

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