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|| माँ शारदे स्तुति "घनाक्षरी छंद" ||

|| माँ शारदे स्तुति "घनाक्षरी छंद" ||

नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||

जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||

वीर रस जब आये, पढ़ खून खौल जाए |
सोये लाल जाग जाये, रव में अंगार दे ||

मैं खडा हूँ द्वारे तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||


संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by आशीष यादव on May 24, 2012 at 11:14am
माँ की स्तुति मेँ सुन्दर रचना। बागी जी बातोँ पर ध्यान देँ
Comment by MAHIMA SHREE on May 23, 2012 at 9:44pm

बहुत ही सुंदर ... संदीप जी ... छा गए आप :) 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 22, 2012 at 11:16pm

जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||

वीर रस जब आये, पढ़ खून खौल जाए |
सोये लाल जाग जाये, रव में अंगार दे ||

प्रिय संदीप जी  बहुत सुन्दर माँ शारदे  वर दें ऐसा ही ...माननीय बागी जी का सुझाव देखिएगा  ..आभार ....भ्रमर ५ 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2012 at 5:17pm

खड़ा हूँ मैं द्वार तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||

अब जरा पढ़िए संदीप भाई , प्रवाह में अटकाव लग रहा था,

बहुत ही खुबसूरत कवित्त की प्रस्तुति है संदीप जी , आनंद आ गया , बधाई स्वीकार करें |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 22, 2012 at 5:13pm

आदरणीय  संदीप जी, सादर 

नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||

जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||

वीर रस जब आये, पढ़ खून खौल जाए |
सोये लाल जाग जाये, रव में अंगार दे ||

मैं खडा हूँ द्वारे तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||

मेरी भी  प्रार्थना माँ स्वीकार कर 
बधाई 
Comment by Rekha Joshi on May 22, 2012 at 4:04pm

मैं खडा हूँ द्वारे तेरे, खोल दे तू भाग्य मेरे |
मुझ चंचल को माता, अपना तू प्यार दे ||

bahut sundr sandeep ji ,badhai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 22, 2012 at 3:01pm

बहुत सुन्दर माँ शारदे की स्तुति माँ शारदे का हाथ हमेशा आपके सिर पर हो यही मेरी शुभकामना है |

Comment by Yogi Saraswat on May 22, 2012 at 2:27pm

नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||

जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान मेरा बना रहे , बुद्धि के भण्डार दे ||

बहुत सुन्दर आराधना श्री "दीप जी " ! बहुत अच्छी रचना

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