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''दिन गर्मी के रंगीन''

मिल्कशेक और आम का पन्ना

नाच-नाच कर पीता मुन्ना 

दिन आये गर्मी के रंगीन 

पर हम शरबत के शौकीन l

एक दो तीन

हुई परीक्षा खतम कभी की

घर में छाई रहती मस्ती

उछल कूद कर मुन्नी हँसती

मम्मी सब पर रहे बरसती 

हर दिन होता दंगे का सीन l

पर हम शरबत के शौकीन l

तीन चार पाँच 

कुल्फी, शरबत और ठंडाई  

ठंडी रबड़ी और मलाई

सबने घर में डट कर खाई

भूल-भाल गये सभी पढ़ाई 

ना लगता कोई ग़मगीन l

पर हम शरबत के शौकीन l

छे सात आठ 

आँगन था काफी गरमाया   

क्यारी में बेला कुम्हलाया  

पानी से छिड़काव लगाया

सबने डेरा वहाँ जमाया

आई चाय और नमकीन l

पर हम शरबत के शौकीन l

मिल्कशेक और आम का पन्ना

नाच-नाच कर पीता मुन्ना 

दिन आये गर्मी के रंगीन 

पर हम शरबत के शौकीन l

-शन्नो अग्रवाल 

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 21, 2012 at 11:36am
इस गर्मी में ठंडी ठंडी कविता पढ़ कर मज़ा आ गया....
अब तो मन कर रहा है...जल्दी से ऑफिस से घर लौटूं और बस पहला काम ढेर सारा शरबत ही पियूँ...
शरबत के हम शौक़ीन...... वाह
हार्दिक बधाई...इस उमंग भरी कविता के लिए.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 9:29am

वाह वाह, गर्मी को रंगीन बनाने के लिए आभार, एक दो तीन को मैं पहले यह सोचा कि तुक मिलाने के लिए कुशन दिया गया है पर फिर तीन चार पाँच ......आदि का तुक नहीं समझ सका, इस बाल गीत को बाल स्वरुप में प्रस्तुत करने हेतु बधाई शन्नो दी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 21, 2012 at 6:12am

वाह वाह .. धारा में प्रवाह वो कि गर्मी को बहा ले जाये. चुन-चुन कर वो हर कुछ खिलाया, पिलाया जो गर्मी खाते-पीते हैं. लेकिन मेरे खीरे, ककड़ी (बतिया), तरबूज और खरबूजे को अपनी सूची में शामिल न कर आपने उन्हें बहुत कष्ट दिया है. या फिर बेल ही लें, जिसको खाते भी हैं और घोल कर पीते भी हैं.

शन्नोजी, आपको इस बाल-गीत पर अतिशय बधाइयाँ.  यों, इसे थोड़ा कस देतीं तो रचना और प्रवहमान हो जाती. दूसरे, इस रचना को बाल-साहित्य समूह में रखना था.

Comment by Shanno Aggarwal on May 21, 2012 at 3:47am

जवाहर लाल जी, राजेश कुमारी जी एवं प्रदीप जी, आप सबको रचना पसंद आई इसके लिये साभार धन्यबाद. आपकी इन टिप्पणियों से मुझे भी बहुत राहत मिली. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 20, 2012 at 11:35pm

आदरणीय   agrvaal   ji   , सादर 

ग्रीष्म ऋतू ke  saare  paey आपने गिना diye 
सुन्दर रचना , बधाई  

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 20, 2012 at 9:35pm

गर्मी में आपकी कविता ही ठंडाई का कम कर रही है बहुत सुन्दर ...बधाई शन्नो जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 20, 2012 at 9:29pm

बहुत सुन्दर! गर्मी से सबलोग परेशान हैं आप की कविता राहत जरूर देगी!

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