For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥

दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥

हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥

ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥

दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥

ज़िंदगी को किया लाचार है मंहगाई ने,
छीनने है लगी मुफ़लिस के निवाले अब तो॥

और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥

  • डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 10:05am

बेहेतरीन गजल

हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥ डॉ.सूर्या बाली जी हार्दिक बधाई

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 18, 2012 at 6:12pm

आदरणीय बाली जी
                नमस्कार,
                           दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
                           जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥
बहुत सुन्दर गजल . बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 14, 2012 at 3:27pm

ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥

और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥

बहुत सुन्दर ..हाँ अब सूरज निकलने ही वाला है ...छाले और पेशानी पर पड़े बल अब रंग तो लायेंगे ही ...डॉ सूरज जी ...बधाई ..भ्रमर ५ 

Comment by Yogi Saraswat on May 14, 2012 at 12:26pm

ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥

दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥

बहुत खूब , आदरणीय डॉ. बाली ! आज मैं भी इस मंच पर आ गया हूँ !

Comment by Ajay Kumar Dubey on May 13, 2012 at 5:27pm

बहुत सुन्दर गज़ल डा. साहब.

बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2012 at 9:01pm

दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो

बहुत खूब डॉ साहब, जिस प्रकार काफिया और रदीफ़ का निर्वहन आपके द्वारा किया गया है वो काबिले गौर है, सभी शेर बढ़िया कहे है , कुल मिलकर एक अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति | दाद कुबूल करें श्रीमान |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2012 at 5:12pm

वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है डा सूर्या बाली जी 

Comment by Raj Tomar on May 9, 2012 at 2:07pm

bahut sundar. :)

Comment by MAHIMA SHREE on May 8, 2012 at 10:04pm

दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥

हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥...

आदरणीय डॉक्टर सूरज जी, नमस्कार  .बहुत ही खुबसूरत गज़ल ..बधाई  स्वीकार करें

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 8, 2012 at 9:33pm

bahut sundar ghazal kahi aapne dr. sahab ...............waah kya baat hai .....laajwaab

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service