For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ का प्यार (लघु-कथा)

माँ मुझे बचपन में मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही रोटियां दिया करती थीं. इंटरवल में सारे बच्चे जल्दी जल्दी खाना ख़त्म करके खेलने चले जाते थे. और मै अपना खाना ख़त्म नहीं कर पता था. तो डब्बे में हमेशा ही कुछ न कुछ बच जाता था, और मुझे रोज़ डांट पड़ती थी. मेरी बहन भी घर आ के शिकायत करती थी कि उसे छोड़ के इंटरवल में मै खेलने भाग जाता हूँ.

.

एक दिन मेरी बहन मेरे साथ स्कूल नहीं गई. मै ख़ुशी ख़ुशी घर आया और माँ को बताया की मैंने आज पूरा खाना खाया है. माँ को यकीन नहीं हुआ, उन्होंने डब्बा खोला और एकदम साफ़ सुथरा डब्बा देख के, मुझे दो झापड़ रसीद कर दिए.

.

फिर माँ बोली की आज तुमने अपना पूरा खाना फेक दिया इसलिए मार पड़ी है. मुझे मालूम है की मै तुम्हे ज्यादा खाना देती हूँ और तुम छोड़ोगे ही. लेकिन अगर 4 रोटी में से 2 भी खा ली तो कुछ तो तुम्हारे पेट में जायेगा.

ये वो माँ का प्यार है, जिसे बचपन में समझ पाना हमारे वश की बात नहीं है.

Views: 731

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 4:12pm

आदरणीय प्रदीप जी, सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 21, 2012 at 1:08pm

//हमारा अहम् इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में ही रैगिंग के दौरान मर चुका है//

धीरे-धीरे बोलिये, भाई..   उस कॉलेज का पंजीयन फेरवाने के फेर में हैं क्या ???   .... .. जय होऽऽऽऽ  :-))))  

 

लघुकथा पर  -  कथ्य के लिहाज से बेहतर कथा है और शिल्प के लिहाज से गणेशजी ने कह ही दिया. वैसे आप अभ्यासरत रहें, आपसे बहुत ही आशान्वित है यह पटल. 

हार्दिक बधाई.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 11:31am

स्नेही राकेश जी, सादर. कथा पढ़ी. मेरे अश्रु माँ के  चरणों में स्वीकार करें. 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 10:45am

आदरणीय बागी जी, सादर, आपकी बात शिरोधार्य, जहाँ तक कला का प्रश्न है, मै नौसिखिया हूँ, ओ बी ओ पर आकर छंद से ले कर ग़ज़ल तक एवं कहानी सब पर अपने हाथ आजमा रहा हूँ, साथ साथ सीख भी रहा हूँ, ये मेरी तीसरी या चौथी कहानी होगी, तो पूर्ण कैसे हो सकती है, आप लोगो के सानिध्य में हूँ, जीवन चर्या से जो वक्त मिलता है उसमे रचना भी करूँगा और आप लोगों के द्वारा बताई बातों पर अमल भी. हमारा अहम् इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में ही रैगिंग के दौरान मर चुका है, इसके बारे में आप निश्चिन्त रहें :)

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 10:37am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, महिमा जी, श्री लक्ष्मण जी, एवं परम मित्र वाहिद भाई, सादर नमस्कार, आप सभी लोगो को कहानी ने छुआ, लिखना सार्थक रहा.
श्री लक्ष्मण जी, आप की बात से मई सहमत हूँ, कई बार घर में अच्छी खाने पीने की चीज़ें आने पर उसे माएं आज भी बच्चों के लिए रख देती है.  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 21, 2012 at 10:32am

राकेश जी, कथ्य पर मैं नहीं जाकर केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि "लघु कथा कि कसौटी" पर और भी कसने कि जरुरत है | हम सभी सीखने के ही दौर में है, अन्यथा नहीं लीजियेगा |

Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2012 at 10:10am
राकेश जी बहुत सही कहा आपने पता नहीं माँ हमारे हरकतों और मन में चल रही कई बातो को पता नहीं कैसे पकड़ लेती है...
इसलिए तो माँ माँ होती है बहुत अच्छी कहानी ...
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 21, 2012 at 10:10am

त्रिपाठीजी, माँ के प्यार पर जितना लिखा जावे, कम है | 

इस विषय पर कहै लिखने के लिए बधाई | मुझे बचपन 
का एक वकियाँ स्मरण हो आया, व्यक्तिगत होते हुए भी 
बता रहा हूँ | एक बार विपरीत आर्थिक  परिस्थिति के 
चलते माँ ने हम तीनो बच्चो को खाना खिला कर भूखी 
ही सो गयी, एसी माँ का प्यार और त्याग ताजीवन भुला 
नहीं सकते | सच है माँ तो आखिर -------माँ है | 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 21, 2012 at 10:08am

एक ही शब्द... निःशब्द...! :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 21, 2012 at 9:53am


राकेश त्रिपाठी जी माँ का प्यार ही एसा होता है जो प्राय खुद माता-पिता बनकर या दूर रहकर  ही समझ में आता है बहुत प्यारी सी लधुकथा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया... सादर।"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर साहब,  इस बात को आप से अच्छा और कौन समझ सकता है कि ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसकी…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service