For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

       (चतुष्क-अष्टक पर आघृत)

पदपदांकुलक छंद (१६ मात्रा अंत में गुरू)

***********************************************************************************************************

सपनों पर जीत उसी की है,

जिसके मन में अभिलाषा है.

वह क्या जीतेंगे समर कभी,

जिनके मन घोर निराशा है ..

 

चींटी का सहज कर्म देखो,

चढ़ती है फिर गिर जाती है.

अपनें प्रयास के बल पर ही,

मंजिल वह अपनी पाती है..

 

 स्वप्न की उन्नत परिभाषा,

क्या तुमने कभी विचारी है.

जिनके सपनें न पूर्ण हुए,

दिखती उनकी लाचारी है..

 

है स्वप्न सत्य या वृथा है ये?

कहने को सिर्फ कथा है ये?

उस जन को ही पहचान मिली,

जिसने भव सिन्धु मथा है ये..

 

देखे ना  होते स्वप्न अगर,

क्या व्योम चन्द्र पर जा पाते.

धरती अम्बर की दूरी का ,

क्या कोई पता लगा पाते ..

 

वह स्वप्न शून्य सा लगता जो,

मंजिल से हमें मिला न सके.

वह जीवन भी जीवन क्या है,

सपनों  का फूल खिला न सके..

                                                     शैलेन्द्र कुमार सिंह 'मृदु'

Views: 930

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on April 5, 2012 at 2:56pm

छंद की जानकारी देते हुए बहुत सुन्दर प्रवाही रचना रची है  'मृदु' जी....

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 5, 2012 at 1:00pm

सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार मीनू मैम

Comment by minu jha on April 5, 2012 at 12:18pm

वह स्वप्न शून्य सा लगता जो,

मंजिल से हमें मिला न सके.

वह जीवन भी जीवन क्या है,

सपनों  का फूल खिला न सके..

बहुत सुंदर मृदु जी

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 5, 2012 at 10:21am

आदरणीय सौरभ सर सादर नमन , सराहना के लिए ह्रदय से कोटि कोटि धनयवाद ,एक पंक्ति में  प्रवाह  टूट रहा था जिसे सीमा मैम ने इंगित भी किया है, का सुधार कर दिया है,आपकी विश्लेष्णात्मक प्रतिक्रिया ही मेरी साहित्यिक प्रगति का आधार स्तम्भ है.

                                                           सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 5, 2012 at 6:54am

भाई मृदु जी, आपको बहुत-बहुत बधाई.  प्रस्तुत रचना की मात्रा व इसके छंद को साझा कर आपने बहुत अच्छा किया है. बावज़ूद इसके कि प्रवाह कहीं-कहीं टूटता है, जिसकी चर्चा कतिपय पाठक कर चुके हैं,  यह रचना कथ्य और शिल्प के लिहाज से समृद्ध है.

हम आपकी साहित्यिक प्रगति के आकांक्षी हैं.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 4, 2012 at 2:15pm

आदरणीय अरुण  "अभिनव" सर स्नेहाशीष के लिए कोटि कोटि धन्यवाद

Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 1:53pm

बहुत शानदार भावो की सशक्त अभिव्यक्ति श्री शैलेन्द्र जी -

सपनों पर जीत उसी की है,

जिसके मन में अभिलाषा है.

वह क्या जीतेंगे समर कभी,

जिनके मन घोर निराशा है

बधाई आपको !

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 4, 2012 at 1:49pm

श्री मयंक सर जी सराहना के लिए ह्रदय से आभार

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 11:11pm

मृदु जोशीली, तेरी कविता,

सपनों को हिला जगा देगी|

जिनके कानों में सन्नाटा,

उनमें भी शोर मचा देगी|

बधाई हो भाई

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 7:52pm

आदरणीय कुशवाहा सर ,सीमा मैम , राजकुमारी मैम,अविनाश सर ,संदीप सर ,प्राची मैम आप सभी को सादर नमन, आप सभी को मेरी  रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आपका सुधार श्लाघनीय है। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service