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"मुद्दतें" - ग़ज़ल

हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;


कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;


वो आये तो ख़िज़ां में भी एक ख़ुशगवारी थी,
नहीं हैं वो तो मुझको इन बहारों में भी सेहरा है;


मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


हुई मय से जो तौबा यार वाइज़ बन गया था,
जो देखा जा के तो जाना वो, न सुधरा था न सुधरा है;


कभी ख़्वाबों में धुंधली सी कोई तस्वीर बनती है,
हुए उनसे मुख़ातिब जाना, यही हसीन चेहरा है;


थी जो गफ़लत मुझे के ये हक़ीक़त है हसीं कितनी;
खुली जो आँख पाया कोई, ख़्वाब सुनहरा है;


चले करने बयां अलफ़ाज़ में उन लम्हात को 'वाहिद',
समझ आया उन्हें ये शख़्स, अंधा-गूंगा-बहरा है;

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 10, 2012 at 7:27pm

प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ आदरणीया डॉ. साहिबा|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 10, 2012 at 1:36pm

हार्दिक आभार राज जी|

Comment by राज लाली बटाला on March 8, 2012 at 9:26pm

khoob!!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 1:46pm

प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ मृदु जी| धन्यवाद,

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:45pm

कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;

 सशक्त शेर बहुत बहुत बधाई 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:24pm

आदरणीय योगराज जी, प्रशंसा के लिए तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:23pm

आदरणीय अभिनव जी सराहना के लिए आपका आभारी हूँ|


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:41am

वाह वाह वाह आदरणीय संदीप द्विवेदी जी, बहुत खूब. एक से बढ़ कर एक आशार कहे हैं, इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी दाद पेश कर रहा हूँ, कबूल फरमाएं.

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2012 at 7:49pm
वाहिद जी ग़ज़ल में हर शेर एक अलग जानदार मंज़र की बयानी कर रहा है बहुत उम्दा भाव और सशक्त शेर , एक से बढ़कर एक | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !! 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 11:29am

प्रोत्साहन के लिए आपका ऋणी हूँ महिमा जी| साभार,

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