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लघु कथा 

अरे भाई हँसमुख जी, आज क्यूँ उदास हो, क्या हुआ ? क्या बताऊँ मैं आज बहुत परेशां हूँ, आप ही बताओ आप को कैसा लगेगा यह जान कर कि आप जिस घर में पिछले दस साल से अकेले रहते हो, उसमे आप के अलावा कोई और भी अचानक आकर रहने लगे !! कल रात कुछ लोग अचानक मेरे घर में मेरे ही सामने मेरे घर में डेरा डाल कर बैठ गए और अपना आधिपत्य जताने लगे और मैं कुछ न कर सका | जी में तो आया कि एक एक को उठाकर फेंक दूं पर क्या करे हमारी भी कुछ अपनी सीमायें हैं | क्या करूँ कौन से तंत्र मंत्र का सहारा लूं कि वो भाग जाएँ, पर सोचता हूँ कि इसमें इनका क्या दोष, दोष तो मेरे ही अपनों का है जिन्होंने मेरे हाथो से बनाए हुए दिनरात मेहनत करके बनाए हुए मेरे इस आशियाने को दूसरों को बेच दिया | कल वो मेरा श्राद्ध दूसरे देश में मना रहे हैं, अपना देश अपना आशियाना छोड़  कर इतनी दूर कैसे जाऊं इसी लिए मैं आज बहुत दुखी हूँ मित्रो |

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2012 at 5:06pm

हा गणेश जी बुजुर्गों की भावनाओं का क्या


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 4:59pm

सच बच्चे तरक्की कर गए  !!!!!!!!!!!!

पुस्तैनी धरोहर बेच कर,

बाप का श्राद्ध कर्म विदेश में कर रहे,

सच बच्चे तरक्की कर गए  !!!!!!!!!!

सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई हो |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2012 at 3:30pm

aabhar Satish ji laghu katha ke tathya ko sarahne ke liye.

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 2:47pm
लाज़वाब .......... अपने मुल्क का सुख और कहाँ मिलेगा ........ इस लघुकथा के माध्यम से बड़ी बात कह दिया राजेश कुमारी जी ....... साधुवाद

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