For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रह कर भी साथ तेरे तुझ से अलग रहे हैं

रह कर भी साथ तेरे तुझ से अलग रहे हैं
कुछ वो समझ रहे थे कुछ हम समझ रहे हैं |


एक वक़्त था गुलों से कतरा के हम भी गुजरे
एक वक़्त है काँटों से हम खुद उलझ रहे हैं |


चाहत की धूप में जो कल सर के बल खड़े थे
मखमल की दूब पर भी अब पांव जल रहे हैं |


उठता हुआ जनाजा देखा वफ़ा का जिस दम
दुश्मन तो रोये लेकिन कुछ दोस्त हंस रहे हैं |


मेरा नाम दीवारों पे लिख लिख के मिटाते हैं
बच्चों की तरह बूढे ये चाल चल रहे हैं |


तूने जिन्हें तराशा मंदिर में जा बसे हैं
पत्थर भी तपिश तेरी किस्मत पे हंस रहे हैं

मेरे काव्य संग्रह ---कनक से ----

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 29, 2010 at 12:10am
बेहतरीन....

तूने जिन्हें तराशा मंदिर में जा बसे हैं
पत्थर भी तपिश तेरी किस्मत पे हंस रहे हैं
बहुत उम्दा ग़ज़ल| दाद कबूल करें|
Comment by jagdishtapish on August 28, 2010 at 8:04pm
माननीया कंचन जी
तुने जिहें तराशा मंदिर में जा बसे हैं ---
हकीक़त को आपने नजदीक से समझा --
हम आपकी समझ को नमन करते है
साथ ही हार्दिक आभार भी ---सादर
Comment by Kanchan Pandey on August 28, 2010 at 5:48pm
तूने जिन्हें तराशा मंदिर में जा बसे हैं
पत्थर भी तपिश तेरी किस्मत पे हंस रहे हैं
bahut khub, achchi rachna
Comment by आशीष यादव on August 26, 2010 at 10:06pm
pranaam,
उठता हुआ जनाजा देखा वफ़ा का जिस दम
दुश्मन तो रोये लेकिन कुछ दोस्त हंस रहे हैं |
bahut sundar rachna mili padhne ke liye. bahut achchhi lagi.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 26, 2010 at 9:11pm
चाहत की धूप में जो कल सर के बल खड़े थे
मखमल की दूब पर भी अब पांव जल रहे हैं |
बहुत खूब, पुनः एक अच्छी रचना पठन करने को मिला, सुंदर और अर्थपूर्ण रचना, बधाई हो भाई साहब इस रचना के लिये,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
17 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service