एक दिन मै अकेले बैठा था, वीरान जगह, सुनसान जगह|
और सोच रहा था ये दुनिया आखिर किस चीज से चलती है||
याद आया दिन कालेज का तब, मार पड़ी थी जब मुझको|
ये बता न पाया था धरती, डिग्री पे झुक के चलती है||
मुझे मार पड़ी थी उस दिन भी, घंटा गणित का था शायद|
कुछ डिग्री कोण न बना सका, ये बात अभी तक खलती है||
इक चंचल चितवन की लड़की, जो प्यार मुझी से करती थी|
जब फेल हुआ तो कहन लगी, किसी और को पकड़ो वो चलती है||
इस गम ने मुझे झकझोर दिया, टूटे दिल के संग चला|
सुन रखा था टूटे दिल की दुनिया, पैमाने से चलती है||
देशी शराब के ठेके पर, पहुंचा मैं पीने की खातिर|
विक्रेता मुझसे पूछ लिया, "कहो कौन सी डिग्री चलती है"||
कुछ पैसों खातिर पहुंचा मै भी किसी कंपनी में|
तब इंटरव्यूवर पूछ लिया, "कोई पास तुम्हारे डिग्री है"||
काम दिहाड़ी दे दूंगा, खाकर वो तरस मुझपे बोला|
और कहने लगा कि "ऐ बेटे दुनिया डिग्री से चलती है"||
अब जाके मै समझा हूँ, दुनिया डिग्री से चलती है||
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