कर तरक्की जो सभा में बोलता है
बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।।
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देवता जिस को बनाया आदमी ने
आदमी की सोच ओछी सोचता है।।
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हैं लगाते पार झोंके नाव जिसकी
है हवा विपरीत जग में बोलता है।।
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जान पायेगा कहाँ से देवता को
आदमी क्या आदमी को जानता है।।
*
एक हम हैं कह रहे हैं प्यार तुमसे
कौन जग में राज अपने खोलता है।।
*
अब जरूरत ही कहाँ है रहज़नों की
राह में खुद को "मुसाफिर" लूटता है।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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