यूँ ज़िन्दगी में आया पहला प्यार
जैसे रेत की तपन में पड़ गई सावन की फुहार
तुमको देखा तो लगा की बस यहीं हैं
जिस पर करना हैं अपना सब कुछ निसार
घंटो छत पर कड़ी धुप में खड़े रहते थे हम
इस इंतज़ार में की बस एक बार हो जाये तेरा दीदार
मुझको देखकर वो तेरा मुस्कुरा देना
वो एक पल आज भी कर देता हैं बेकरार
हर महफ़िल में खुद को तनहा सा पाते थे तेरे बगैर
और इक तेरे आ जाने से जैसे आ जाती थी बहार
मेरे इनकार की कोई गुंजाईश न थी कभी
था तो बस एक तेरी पहल का इंतज़ार
तुमको पाकर जिन्दगी का हर रंग जी लिया हमने
तेरे साथ से हो गया मेरा हर पल खुशगवार
दुआ है अब बस यही हर चाहने वाले के लिए
कामयाब कर ऐ खुदा हर किसी का पहला प्यार
Comment
इस संवेदनापूरित संभावना के प्रति उछाह बना है. शुभेच्छा...
धन्यवाद आप दोनों का मेरी रचना पसंद करके मेरा मार्गदर्शन करने के लिए!
आपलोगो से सीखने का प्रयास कर रही हूँ उम्मीद करती हूँ मार्गदर्शन करते रहेंगे॥
//दुआ है अब बस यही हर चाहने वाले के लिए
कामयाब कर ऐ खुदा हर किसी का पहला प्यार//
वसुधा जी ! बहुत ही खूबसूरत रचना रची है आपने ! सर्वकल्याणमयी कामना से युक्त इस रचना को पढ़वाने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद स्वीकार करें !
कृपया भाई बागी जी की बात पर भी अवश्य ध्यान दें !
बसुधा जी बहुत ही सुन्दर ख्याल है, इस रचना को जरा सा प्रयास से एक ग़ज़ल का रूप दिया जा सकता है, आदरणीय तिलक जी की कक्षा देखे,
बहरहाल एक खुबसूरत प्रयास को सलाम |
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