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ज़िन्दगी का सफ़र कितना ही कठिन हो मगर,
हँस कर गुज़ार ही लूंगी!
संघर्षो की तपती धूप में तपकर,
अवसादों की गहरी छाया में चलकर,
मंजिल को पा ही लूंगी!
लम्बी पगडंडियों में चलते चलते अक्स

काँटों की छुअन से मनन विचलित होता हैं,
तो भी इस कटीली छुअन से ज़िन्दगी का सार ही लूंगी!

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Comment by Ravi Prabhakar on August 21, 2011 at 12:48pm

आशावादी रचना...... बहुत बहुत बधाई।

 

Comment by Vasudha Nigam on July 29, 2011 at 7:04pm

आभार वंदना जी 

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