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दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . विविध

जीवन के अनुकूल कब, होते हैं हालात ।
अनचाहे मिलते सदा, जीवन में आघात ।।

अपना जिसको मानते, वो देता आघात ।
पल- पल बदले केंचुली ,यह आदम की जात ।।

कहने को हमदर्द सब, पूछें अपना हाल ।
वक्त पड़े तो छोड़ते, हाथों को तत्काल ।।

इच्छा के अनुरूप कब, जीवन चलता चाल ।
सौम्य वेश में पूछता, उत्तर रोज सवाल ।।

मीलों चलते साथ में, दे हाथों में हाथ ।
अनबन थोड़ी क्या हुई, तोड़ा जीवन साथ ।।

सुशील सरना/16-8-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on August 20, 2024 at 2:24pm

आदरणीय हरि ओम जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार ।

Comment by Hariom Shrivastava on August 20, 2024 at 9:44am

वाह,वाह,बहुत सुंदर दोहे

Comment by Sushil Sarna on August 18, 2024 at 2:59pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सूचना के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2024 at 12:07pm

छंदोत्सव प्रारंभ हो चुका है, आदरणीय

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