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कौरव पांडव मिल चीर खीचते ,
सदन खड़ी बेचारी द्रोपदी बनकर,
हाथ जोड़े लुट रही थी वो अबला,
कृष्ण ना दिखे किसी के अन्दर ,

चुनाव का चौपड़ है बिछने वाला ,
शकुनी चलेगा चाल,पासे फेककर,
खेलेंगे खेल दुर्योधन दुश्शाशन ,
होगा खड़ा शिखंडी भेष बदलकर,

हे!जनता जनार्दन अब तो जागो,
रक्षा करो कृष्ण तुम बनकर,
दिखाओ,तुम्हे भी आती है बचानी आबरू ,
"बागी" नहीं जीना शकुनी का पासा बनकर,

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Comment by Anand Vats on July 22, 2010 at 5:15pm
आहा | मज़ा आगया दोस्तो को भी पढ़ाया मैने , सब लोग अपपको बहुत बहुत बधाई दे रहे है इस उत्कृष्ट लेखन के लिए |
Comment by Chhavi Chaurasia on July 22, 2010 at 2:37pm
गणेश जी, आज के हालात पर बहुत अच्छी रचना लिखी है आपने .काश....अब भी जनता को एहसास हो जाता कि कितने निर्लज और बेशर्म लोग उनके रहनुमा बने हुए हैं.
Comment by Neelam Upadhyaya on July 22, 2010 at 10:23am
"बागी" नहीं जीना शकुनी का पासा बनकर

आजकल के पिरदृश्य में एकदम सही कहनाम बा । जेकरा में भी थोड़ बहुत "कृष्ण" बाँचल रह गइल बा ऊ शकुनी के पासा बन के रह गइल बा । बिहार विधान सभा में काल्ह जवन भी घटना (दुर्घटना) घटल हऽ ओकर समाचार देख के मन एतना शर्मसार भइल कि अपना बिहारी होखे पर पहिला बार बहुत दुख भइल ।
Comment by guddo dadi on July 22, 2010 at 9:36am
देश के नेताओं बहुत अच्छे चित्र है
मनोज जी पहली चित्र देख कर तो मुगले-ऐ -आजम के गीत की पंक्ति
गगरिया तोड़ डाली मधुबाला जी ने साड़ी पहनी सुंदर अति सुंदर
Comment by guddo dadi on July 21, 2010 at 11:51pm
देश में अब शकुनी ही शकुनी नेता राज है
कृष्ण जी भी जन्म लेने से डरते हैं

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2010 at 11:20pm
आदरणीय रजनी दीदी ,बब्बन भैया ,सुनील पाण्डेय जी, अभिषेक भाई , राणा भाई और सूर्यजीत भाई आप लोगो का बहुत बहुत धन्यवाद इस उत्साहवर्धन के लिये ,
Comment by rajni chhabra on July 21, 2010 at 11:13pm
anuthee soch aur bhrisht rajnaati pr gahre waar ke liye sadhuvad.
Comment by suryajeet kumar singh on July 21, 2010 at 11:03pm
गणेश भएया रौवा ता बहुत बढ़िया लिखलेबानी लेकिन द्रोपति के पाचावे खातिर श्री क्रिसना जी आएल रहनी लेकिन ए जनता यानी की हॅम्नी के बीच मे कहु क्रिस्न बने के तएयर नएखे . सब कहु पढ़ लिख के कैओनो आराम के नाओकरी खोजता . ता रौवे सोची की अपना देश के का होई भगवान मलिक बड़े ई महान् भारत देश के....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 21, 2010 at 10:48pm
कोई भी टिप्पणी दूं इससे पहले

हिंदी भाषा के जानकर लोगों से करबद्ध निवेदन है कि विधान सभा को अब अखाड़ों का पर्यायवाची घोषित कर दीजिये और सदन के सत्र को दंगल का. जहां पर दूर दूर से कई सारे पहलवान आकार अपने दम खम कि अजमाइश करते है.

बागी भैया आपकी ये पंक्तियाँ इतना ज़रूर बयाँ कर रही है कि पानी अब सर से ऊपर बह रहा है. संभल जाओ नहीं तो बह जाओगे.

अंत में
सदन की शोभा बढ़ा चुके अटल जी की एक समसामयिक कविता

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
Comment by sunil pandey on July 21, 2010 at 9:27pm
kya bat hai sir .. bahut bandhiya.. great...

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