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साक्षरता की गूंज (लघुकथा)

समय से पहुंचना जरूरी था, इसलिए मैंने बस पकड़ ली थी। बैठने के लिए स्थान नहीं मिला लेकिन एक ओर खड़े होने की जगह मिल गई थी। बस लगभग पूरी तरह भरी हुई थी। साथ चढ़ने वाले यात्रियों में पचास के आसपास की वह ग्रामीण स्त्री भी थी, जो बस की स्थिति देखकर मायूस हो; अन्य सभी की तरह एक सीट के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गई। उसी सीट पर बैठी दो युवा उच्च शिक्षित लड़कियाँ, उसको पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए अपनी बातों में लगी रही। दूसरों की परेशानी समझ पाना शायद उनके सामर्थ्य से बाहर की बात थी। बहरहाल उनके दो सीट पीछे बैठे एक वृद्ध ने अवश्य अपनी सीट से उठने का उपक्रम किया। "बहन तुम इधर बैठ जाओ, थक जाओगी।"

"नहीं आप बैठिए। सफर लंबा है, आप को इसकी अधिक जरूरत है।" स्त्री के कहे शब्दों से सहज ही वृद्ध की आँखों में आभार का भाव उभर या।

"आंटी बैठ जाइए, वह सीट लेडीज के लिए ही है।" उन दोनों लड़कियों में से एक को शायद यह ग़वारा नहीं हुआ था।

"येस, इट्स क्लियरली रिटन ओवर देयर।" (हाँ, ये उपर साफ-साफ लिखा भी हुआ है) दूसरी ने भी उसकी बात को पक्का कर दिया।

मैं कुछ बोलना चाहता था लेकिन मुझसे पहले ही उस ग्रामीण स्त्री ने शांत स्वर में एक सटीक जवाब दे दिया। "बेटी उन्हें (वृद्ध को) सीट की जरूरत मुझसे अधिक है और यह बात महसूस करने की है नियमों में तोलने की नहीं।"

"लेकिन आंटी. . .!" उसने कुछ कहना चाहा, तब तक दूसरी लड़की ने तीखे शब्दों से उसकी बात काट दी। "लीव हर, शी इज टोटली अनटॉट!" (छोड़ो उसे, वह पूरी तरह अनपढ़ है)

"सॉरी बेटी !" इस बार उस स्त्री का स्वर अपेक्षाकृत तेज हो गया था। "मैं तुम लोगों की तरह किसी शहरी कॉन्वेंट में तो नहीं पढ़ी लेकिन इतना अवश्य जानती हूँ कि 'रूल्स आर क्रिएटेड टू गिव कंम्फर्ट टू अस; नॉट टू पनिश अदर्स' (नियम हमें आराम देने के लिए बनाए जाते हैं, किसी दूसरे को सजा देने के लिए नहीं), समझी!"

अनायास ही उसकी साक्षरता की गूंज मेरे साथ अन्य कई लोगों के चेहरे पर भी सम्मान के साथ झलकने लगी थी, अलबत्ता वह दोनों जरूर खिड़की से बाहर, शाम के अंधेरे में कुछ ढूंढने लगी थी। 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:16pm
आदरणीय जी बहुत सुंदर और सार्थक लघु कथा सृजित हुई है सर । हार्दिक बधाई
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 11, 2022 at 8:42am
सर्प्रथम तो लघुकथा पर आपकी प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए आभार आद: चेतन प्रकाश जी। आपका अमूल्य राय के लिए धन्यवाद। आपने मेरी यह प्रथम रचना पढ़ी है, मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि मेरे पृष्ठ पर जाकर और लघुकथा के पुराने मासिक आयोजन में शामिल जाकर मेरी अन्य रचनाओं को अवश्य पढ़े और अपनी राय से अवगत करवाएं। हाल फ़िलहाल मैं पिछले दो -तीन वर्षों से मैं इस आयोजन का हिस्सा नहीं बन या रहा हूँ लेकिन जल्दी ही मैं अवश्य दोबारा इसका हिस्सा बनूंगा। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 11, 2022 at 8:35am
लघुकथा पर आपकी उत्साहवर्द्धन करती टिप्पणी के लिए आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 11, 2022 at 8:24am
लघुकथा पर आपकी स्नेहिल एवं प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए दिल से आभार आदरणीय समर जी।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 10:37pm

आ. भाई विरेन्द्र जी, सुन्दर कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on April 9, 2022 at 9:22am

नमस्कार, वीरेंद्र वीर  मेहता जी, कदाचित  पहली बार  आपकी कोई लघुकथा पढ़ी, प्रस्तुति निस्संदेह  अच्छी  और  तकनीकी  दृष्टिकोण से मुझे प्रौढ़  जान पड़ी ! ओ.बी.ओ. लघुकथा कार्यक्रम  मे सक्रिय  हों और अन्य  कथाकारों को जरूर  पढ़ें,  अपनी राय  अवश्य  दे, जिससे   लघुकथा को और बेहतर समझ सकें, संप्रेषणीयता  संक्षिप्त रहते भी बढ़ा सकें ।

Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 3:08pm

जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब'अच्छी लघुकथा लिखी है आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

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