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कुछ दिन पहले तक ही तो,वो घुटनो के बल चलती थी

अपनी तुतलाती भाषा में, पापा-पापा कहती थी

पहली बार जो अपने मुँह से, पहला शब्द वो बोली थी

मुझे याद अब भी वो तो, पापा ही तो बोली थी

कल ही की तो बात है उसने, गुड़िया मुझसे माँगा था

मेरे काम के थैले को कल ही, खूंटी पर उसने टांगा था

कल तक जो मेरे घुटनो के, ऊपर तक ना बढ़ पाई थी

अपने पैरों पर चल कर वो, पलंग पर ना चढ़ पाई थी

आज अचानक बड़ी हो गयी, कंधे तक है बढ़ आई

बचपन की चौखट को जैसे, छोड़ के पीछे चल आई

जाने कितनी बाते हैं जो, यादें बन कर रह जाती है

हम चाहे या ना चाहे पर, बेटी बड़ी हो जाती है

उसके बचपन का हर एक पल, यादों में अब भी दौड़ रहा

छुटपन से कब वो बड़ी हुई, मुझको न कोई ठौर रहा

साथ में जिसके बचपन बीता, जिसके संग रोया गाया था

माँ पापा के डाँट से जिसने, हर दम उसे बचाया था

जो था उसके खेल का साथी, हर बात जिसे वो बताती थी

भूल उसी की ना हो लेकिन, उसके बदले डाँट वो खाती थी

आज वो भाई सिसक रहा था, भाव भरे थे बोली में

जाने को तैयार थी बहना, बैठकर घर से डोली में

आज बड़ी है साजस-जावट, मेहमानो की भीड़ है

बात तो है ये बड़ी ख़ुशी की, पर इन आँखों में नीर है

हल्दी,चन्दन, उबटन और, मेहंदी की खुशबु छाई है

बड़ी खुश है माँ चेहरे से, पर अंदर से मुरझाई है

 

दौड़ भाग में लगा है भाई, सर पर ढेरों काम लिए

वहीं पास में बाप खड़ा है, दिल में ढेरो अरमान लिए

घोड़ी बैठा संग बाराती, दूल्हा द्वार तक आ पहुंचा

समधी जी स्वागत करने, बाप वहाँ तक जा पहुँचा

बस कुछ देर में ही अब, सारी रस्मे पूरी हो जायेगी

जाते जाते संग वो घर की, सारी खुशियां ले जाएगी

फिर कोई हं सी गूंजेगी, ना फिर कोई गायेगा

साथ न होगा कोई भाई के, किसके संग धूम मचाएगा

मंडप पर बैठे पापा ने, बेटी का कन्यादान दिया

अपने जिगर के टुकड़े को, अनजाने कर में सौंप दिया

आंसू रोक ना पाए पापा, रूमाल से मुहँ को झेप लिया

घूँघटके पीछे से बेटी ने, ये सबकुछ था देख लिया

घर-घरौंदे खेल-खिलौने वो छोड़ यही सब जाएगी

माँ की आँचल प्यार भाई का पिता की छाँव ना पाएगी

पड़ गए फेरे हो गई शादी रस्मे सारी ख़त्म हुई

चौखट के उस पार चलने को, बेटी अब थी खड़ी हुई

दुनिया का रिवाज़ यही है ये सबको निभाना पड़ता है

छोड़ पिता के घर को एक दिन बेटी को जाना पड़ता है

ना रोना तुम मम्मी-पापा मैं तुमसे हूँ दूर नहीं

तुमसे मिलने ना आ पाऊं मैं इतनी भी मजबूर नहीं

आँखों में आंसू को थामे चहरे से वो मुस्काई थी

दिल भारी था पापा का पर करनी पड़ी विदाई थी

"मैलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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