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उसकी एक हंसी से बगिया की सारी क्यारी खिल गयी

आज हमारे उदासी घर को ढेर सी खुशियां मिल गयी

दिए जलाओ ख़ुशी मनाओ फूलों का झूला तैयार करो

लक्ष्मी चल कर घर है आई मिलकर उसका सत्कार करो

जिसके कर्म बड़े अच्छे हो बड़े पुण्य के काम किए

कर्म फल उनको है मिलता कन्या का अवतार लिए

जिसके घर में बेटी जन्मी , वो घर स्वर्ग बन जाता है

माँ बाप का पूरा जीवन तभी सफल हो जाता है

उसके घर में ना होने से जग सुना हो जाता है

चाहे भीड़ बरी हो घर में बीहड़ सा हो जाता है

वो जागे तो सूरज चमके वो सोए तो रात है

आन पिता का घटना बढ़ना सब उसके ही हाथ है

पुत्र पिता का वंश चलाता बेटी प्रथा चलाती है

मान बढ़ाती सदा पिता का औरो का धन कलाती है

दूर बहुत हो चाहे तन से मन साथ ही रहती है

बेटा चाहे छोड़ भी जाए पर बेटी साथ निभाती है

बेटी पिता की कर्मफल का जीवंत एक प्रमाण है

अपने कूल की मर्यादा का रखती जो सम्मान है

जो पराये घर को जाकर अपने घर की लाज रखे

ऐसी बेटी हर पिता के जीवन का अभिमान है

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 3, 2022 at 7:03pm

//कृप्या करके शिल्पगत कमियों का कोई एक उदाहरण दे ताकी मैं उसे सुधार सकूं।//

'दूर बहुत हो चाहे तन से मन साथ ही रहती है'... इस पंक्ति को देखियेे, अगर ऐसे कहें - 

'जितनी दूर हो चाहे तन से मन से साथ ही रहती है'  सादर। 

Comment by AMAN SINHA on March 3, 2022 at 1:07pm

श्रीमान अमीर साहब, 

त्रुटियों के प्रती ध्यान दिलाने के लिये आभार।

कृप्या करके शिल्पगत कमियों का कोई एक उदाहरण दे ताकी मैं उसे सुधार सकूं। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 3, 2022 at 11:53am

आदरणीय अमन सिन्हा जी आदाब, चन्द टंकण त्रुटियों और शिल्पगत कमियों के बावजूद अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है, 

बेटी के प्रति पिता के उद्गारों की सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर। 

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