आहट की संभावना, करवट का आभास,
पुलक देह ने भर छुअन, लिया मुग्ध उच्छ्वास
नस-नस झंकृत राग-लय, तन-तन लहर गुँजार
बासंती मनमुग्ध को, प्यार प्यार बस प्यार !
पता नहीं किस ठौर से, आयी अल्हड़ भोर
तन मन से बेसुध मगर, मुग्ध नयन की कोर
तन्वंंगी अल्हड़ लता, बैठी उचक मुँडेर
खेल रही है धूप में, बासंती सुर टेर ।
***
Comment
आदरणीय समर साहब, आपकी आमद, और देखिए कि बासंती दोहों का ढंग उमंग की तरंग पर उचंग हुआ खुशरंग हो गया.
जय-जय, शुभ-शुभ
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत उम्द: बासंती दोहे हुए हैं, हर दोहा अपने आप में क़ीमती है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय, आपके द्वारा "उच्छ्वास" शब्द के विन्यास और मात्राभार को बारीकी और सुंदर ढंग से समझाने के लिए आपका हार्दिक आभार।
स्पष्टतया शंका का समाधान हुआ। सादर।
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अमीरुद्दीन ’अमीर’ साहब
’उच्छ्वास’ शब्द की अक्षरी है, उच्छ्+वा+स.
अर्थात इस शब्द में जो ’छ’ है, वह ’च’ के साथ आधा है और दोनों ’वा’ के साथ संयुक्त हैं. इस तरह इस शब्द का विन्यास २ २ १ होता है. अतः इस शब्द का उच्चारण उच्+छ+वा+स की तरह नहीं, बल्कि उच्छ्+वा+स की तरह करते हैं.
विश्वास है, आपकी शंका का समाधान हो पाया होगा.
शुभातिशुभ
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, सुंदर दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय... "लिया मुग्ध उच्छ्वास" इस सम चरण की मात्रा गणना क्या ऐसे नहीं होगी...
"लिया मुग्ध उच्छ्वास"
"1 2 2 1 2 1 2 1" कृपया मार्गदर्शन करें, सादर।
उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी.
जय-जय
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। एक से बढ़कर एक दोहे हुए हैं। असीम हार्दिक बधाई।
आदरणीय सुशील सरनाजी, उत्साहवर्द्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद
शुभ-शुभ
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार
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