For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे
केवल जगत  में  शौक  से  नेकी  बचा रहे।१।
*
हम को कहो  न  आप  गुनाहों का देवता
पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।
*
चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की
इस को  जरूरी  रात  में  कोई  जगा रहे।३।
*
माना बुरे हैं  दाग  भी हमको लगे हैं पर
वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।
*
अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो
अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।
*
झगड़ा न करके शांति से रहना नसीब हो
ईश्वर हमारा  आप  का  जग में  ख़ुदा रहे।६।


मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 652

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2021 at 6:34pm

आ. भाई समर जी, पुनः उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on July 2, 2021 at 2:25pm

'केवल समझ के फर्ज ही नेकी बचा रहे'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-

'बस नेकियों का अपनी अमल ये बचा रहे'

'पर चौकसी को रात में कोई जगा रहे'

इस मिसरे में 'जगा' शब्द उचित नहीं,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कहें:-

'तो चौकसी को शब में कोई जागता रहे'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 4:52pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद । इंगित मिसरों को सुधारने का प्रयास किया है । देखियेगा....

/केवल समझ के फर्ज ही नेकी बचा रहे

/

पर चौकसी को रात में कोई जगा रहे

Comment by Samar kabeer on June 21, 2021 at 3:15pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

केवल जगत  में  शौक  से  नेकी  बचा रहे'

ये मिसरा मेरी समझ में नहीं आया ।

'इस को  जरूरी  रात  में  कोई  जगा रहे'

इस मिसरे का शिल्प भी मेरी समझ में नहीं आया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 3:29pm

आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 3:29pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

Comment by Aazi Tamaam on June 16, 2021 at 10:22am

सादर प्रणाम धामी सर खूबसूरत ग़ज़ल हुई है

सहृदय बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 16, 2021 at 9:39am

आ. लक्ष्मण जी.
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है.
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service