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1
अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब
दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब
2
ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब
हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब
3
झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में
और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब
4
मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी
ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब
5
उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"
इस तरफ़ था मेरी जाँ का रुख़ ए ज़ेबा कल शब
6
ज़िन्दगी साँस की तारों से बँधी थी "निर्मल"
उसने इस पाश को ही नींद में तोड़ा कल शब
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
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