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ग़ज़ल: कोई समझाए माजरा क्या है

2122 1212 22

कोई समझाए माजरा क्या है

तीरगी क्या है यूँ कि रा क्या है

मिटना हर शय का तो मुअय्यन है

ज़िंदगानी में निर्झरा क्या है

इक समंदर के जैसे लगती हैं

नम सी आँखों में दिल भरा क्या है

टूट कर ख़्वाब गिरते रहते हैं

आँख में आईना सरा क्या है

देख कर उनको आरज़ू करना

दिल की हसरत का दिलबरा क्या है

इश्क़ में रूह गर जो महके, तो

मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या है

चाहतें भी हों दायरों में अगर

ऐसी बातों का फ़िर सिरा क्या है

प्यार करना हो गर ख़ता कोई

आख़िर इस पर भी मशविरा क्या है

साथ देती न ज़िंदगी ख़ुद की

फ़िर किसी का भी आसरा क्या है

सर उठाना हो गर गुनाह कोई

फ़िर न पूछो कि दिल डरा क्या है

हो अगर लाज़िमी सवाल-ए-शिकम

फ़िर भला क्या है और बुरा क्या है

मौत बन जाए ज़िंदगी गर जो

फ़िर परी क्या है अप्सरा क्या है

लोग आते हैं बस नमक लेकर

पूछने हाल अब मिरा क्या है

चैन से मरने भी नहीं देते

दिल दुखाने का दायरा क्या है

इक महज़ क़ब्रगाह ताजमहल

देख ली शान-ए-आगरा क्या है

ज़ख़्म ही ज़ख़्म हैं "तमाम आज़ी"

और इसके सिवा हरा क्या है

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आज़ी तमाम

रा          : संस्कृत में प्रकाशमान/ मिस्र में सूर्य का देवता

निर्झरा   : अजर अमर

मुअय्यन : निश्चित

Views: 521

Comment

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Comment by Aazi Tamaam on April 2, 2021 at 10:30am

सादर प्रणाम आदरणीय ब्रज जी 

हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिए सहृदय धन्यवाद

जी ग़ज़ल अभी अधूरी भी है और गड़बड़ भी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 1, 2021 at 8:25pm

भाई आज़ी तमाम जी बढ़िया कहा...लेकिन मतले का सानी समझ नही आ रहा...ऐसे देखें

नम सी आँखों का फ़लसफ़ा क्या है

कोई समझाए माजरा क्या है

Comment by Aazi Tamaam on March 27, 2021 at 8:30pm
सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी

शुक्रिया ग़ज़ल तक आने व मार्गदर्शन कर ग़ज़ल दुरुस्त कराने का प्रयास करने के लिये

एक बार कबीर गुरु जी और नज़र डाल दें ग़ज़ल पे फ़िर एक ही बार में एडिट करके पोस्ट कर दूंगा

इस्लाह के लिये सहृदय धन्यवाद
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 27, 2021 at 7:40pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, मुबारकबाद पेश करता हूँ।

'कोई समझाए माज़रा क्या है'   इस मिसरे में 'माज़रा' से नुक़्ता हटा लीजिए, सही लफ़्ज़ 'माजरा' है।

'देख कर उनको आरज़ू करना

दिल की हसरत का दिलवरा क्या है'  इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, रब्त के लिए 'उनको' को तुमको करना उचित होगा, 'दिलवरा' को दिलबरा कर लें।

'बिन सनम साँस तक नहीं आती

मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या है'       इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है,  ऊला बदलने का प्रयास करें। 

'ऐसी बातों का फ़िर सिरा क्या है'      यहाँ क़ाफ़िया बदल गया है।

'आख़िर इस पर भी मशवरा क्या है'  सही लफ़्ज़ मशविरा होने की वज्ह से यहाँ भी क़ाफ़िया बदल गया है। 

'हो अगर लाज़िमी सबाल ए शिकम   टंकण त्रुटि ठीक कर लें 'सवाल' 

'फ़िर भला क्या है और बुरा क्या है'   यहाँ भी क़ाफ़िया बदल गया है।   ग़ौरकीजियेगा।  सादर। 

 

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