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"किनारा "

मानो उन्हें  किसी की  प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए  तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे  चलकर  वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .

"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले 

"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न 

" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है राधे ." 

"मतलब तुम मुझे भूले नहीं हो."  और वो लौटने को हुई 

" नहीं ! नहीं ! तुम बस ऐसे ही द्वार से नहीं जा सकती . अंदर आओ राधा ." अनुनय  के स्वर  में माधव  ने कहा 

" नहीं माधव ......ये ठीक न होगा ." राधा बोली 

"अच्छा बताओ! तो फिर मैं तुम्हें कहा मिलू ? माधव ने हँसते  हुए पूछा 

"तुम आ पाओगे ? राजा हो अब तुम . मैं तो जीवन संध्या के इन अंतिम क्षणों में तुम्हें  बस एक बार देखना चाहती थी ."

"  हां ! हां ! जरूर आऊंगा राधे . संध्या समय समुद्र के किनारे एक छोटा सा मंदिर है वहाँ. थोड़ी देर और रुकती राधा. उसने विनती  की पर वो लौट गई .

कृष्ण उसे जाते देखते रहे और पुनः कक्ष की ओर मुड़ने लगे तो देखा रुक्मिणी उनके पीछे ही खड़ी थी . रुक्मिणी ने कृष्ण की हथेली को कसकर पकड़ते हुए कहा " मैं ! मैं! भी मिलाना चाहती हूँ उससे एक बार . कितने वर्षो की अस्वस्थता हे मरी ..कि ऐसा क्या है उसमें.....वो मुझसे मिले बिना नहीं जा सकती 

"कहूंगा  उससे " माधव ने हलके से उत्तर दिया 

" सिर्फ़ कहूंगा नहीं , मुझे वचन चाहिए . कब मिलने वाले हो उससे ."

" ठीक हे वचन देता हूँ . संध्या प्रहर में मिलूंगा. माधव कुछ असहज हो रहे थे 

"संध्याकाल क्यों ? अपरान्ह  में भी उन्नत मस्तक से जा सकते हो. मुझे कोई आक्षेप नहीं है . रुक्मिणी ने कटाक्ष करते हुए कहा 

----------------

उस छोटे से मंदिर में एक दिया जल रहा था  जो हवा से फडफडा रहा था. अंदर की मूर्ती  के प्रति उसे कोई उत्सुकता नहीं थी . उसे एकदम उदास लगाने लगा. क्यों आयी वो यहाँ. 

राधा मंदिर की सीढ़ियों पर पीठ टिकाकर बैठ गई .सूर्यास्त के बाद का प्रकाश अभी अँधेरे की और नहीं बढ़ा था. श्याम उसे आते हुए दिखाई दिए , मोहक आकृति में बहती हवा से उनका उत्तरीय लहरा रहा था . राधा ने उठने का प्रयास किया पर .... श्याम ने काँधे पर हाथ धर उसे बैठने का इशारा किया  ओर वो भी सहज होकर उसके पास सीढ़ी पर बैठ गए.
राधा का हाथ हाथों  में लेकर अपनी अंगुलियाँ उसमे फ़सा दी ओर दूसरे हाथ से सहलाने लगे. कुछ क्षणों बाद राधा ने हाथ छुड़ाते हुए  पूछा " बांसुरी नहीं लाये ? एक बार फिर से बजाते तो .."

" नहीं राधा ! द्वारिका के समुद्र में वो तुम्हें सुनाई नहीं देती . हवा ओर पानी की आवाज ओर फिर अब मेरे पास बांसुरी ..."

" मतलब?" राधा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा

"मतलब पगली गोकुल से निकलते वक्त तुमने ही तो छीन ली थी ,फिर मैंने कभी बजने की कोशिश भी नहीं की .  माधव ने हँसते   हुए कहा 

" और! तुम्हारे आने के बाद मेरे मन में क्या हुआ जानते हो ? राधा ने पूछा 

" मैं! समझा नहीं ."
  

" कैसे निर्दयी हो  श्याम . इतने साल  सब कुछ सहकर बाल सफेद हो जाने के बाद मैं  क्यों आयी यहाँ. "

श्याम  हाथ में हाथ डालकर हौले से उसे उठाते  समुद्र किनारे चलने लगे. रुक्मिणी , भामा ,द्रौपदी  सभी की बातें करते हुए करीब करीब सारी रात गुजार दी . राधा थककर चूर हो गई थी . पूर्व की ओर सूर्य के लालिमा की दस्तक होने को थी. वो झट नीचे  बैठ गई.उसकी नजर श्याम के कदमों पर गई -रेत पर उनके पदचिन्ह  स्पष्ट उभर आए थे .झट उसने उनके पैरों के पास से रेत उठाकर मुठ्ठी में भर ली  ओर धीरे से पल्लू के किनार में उसे बाँध लिया
.

" ये क्या राधा ? मुझे भी दो उसमे से थोड़ी ." माधव ने आतुरता से कहा 

"अरे! ये क्या  क्यों ?.."

" मैंने वचन दिया है रुक्मिणी को ." माधव ने कहा 

"श्रीरंग! ये लो. कहते हुए राधा ने  रेत के साथ  एक  हल्का सा गुलाबी रंग लिए छोटी सी सिंपी भी  हथेली पर रख दी . 

माधव ने आँखे बंद कर ली मानों उनके भीतर हृदयस्थल  के अंतस तक  सब  कुछ पहुँच गया था. 

"आता हूँ अब" कहते श्याम तेजी से आगे बढ़ा गये  .

"हे श्याम ! कहते राधा उसके निरंजन पदचिन्हों को अकेले ही समुद्र के किनारे देखती रही.सच तो यह था की वह अकेले श्याम को नहीं देख  रही थी.

क्षितिज पर सूर्य भी इस विलक्षण दृश्य का साक्षी था.

-------------
मौलिक,अप्रकाशित 

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 25, 2021 at 7:24pm

हार्दिक बधाई नयना (आरती) कानिटकर जी, बेहतरीन प्रसंग।जिस रोचक और मार्मिक शैली में आपने इस वर्णन को प्रस्तुत किया है। वह अद्भुत है। कल्पना से परे है।

Comment by Samar kabeer on March 24, 2021 at 7:42pm

मुहतरमा नयना आरती कानिटकर जी आदाब, अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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