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घटे न उसकी शक्ति

परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त

कण - कण में सर्वत्र

विन्दु रूप में क्यों भला

बैठेगा अन्यन्त्र ?

सबमें वह , उसमें सभी

चहुँदिशि उसकी गूँज

क्या यह संभव है कभी

सिन्धु समाए बूँद ?

ज्ञान नेत्र से देखते

संत , विवेकी व्यक्ति

आत्मा ही परमात्मा

घटे न उसकी शक्ति

मौलिक एवं  अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on November 8, 2020 at 6:47am

मैंने बहुत प्रयास किया किन्तु फोन ठीक ना होने के कारण आप सबकी प्रतिक्रिया के उत्तर नहीं दे पाई ।

सभी आ 0 को मेरा  सादर  आदाब,अभिवादन  एवं प्रणाम

,हार्दिक आभार ,आप सभी का

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:39pm

वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर रचना।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 11:21am

आ. ऊषा  जी , अभिवादन।अच्छी रचना हुई है, हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on October 20, 2020 at 8:19pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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