जासूसी उपन्यास पढ़ चुके एक मित्र से दूसरे मित्र ने उसकी कहानी का आशय पूछा।पहले ने जवाब में कहा,'
भरोसा, चोट......।'
' मतलब?' दूसरी तरफ से सवाल हुआ।
' परी कथा समझते हो न?'
' बिलकुल।'
' बस वैसा ही समझ लो।खेतों से पेट पालनेवाले चिड़ों के इलाके में एक सफेद चिड़ी उतरी। धूप में झुलसे उन बाशिंदों में वह गोरी थी, परी समझ ली गई।सुनहरी होने के चलते उसे सोनी नाम मिला। परिंदों का सरदार चिड़ा उसपर फिदा हुआ।दोनों का चोंच - बंधन हो गया। एक दिन ऊंची उड़ान भरते वक्त चिड़ा काल कवलित हो गया।समूह ने सोनी की ताजपोशी कर दी।
सोनी को सोना बहुत प्रिय था। उसने परिंदों के पंखों की नीलामी शुरू कर दी।हाहाकार मच गया। हठात परिंदों के एक वृहत समूह ने अपना नया परिंदा(सरदार)मुकर्रर कर लिया। अब घायल परिंदों के घावों पर मरहम लगने लगे।सोनी छटपटाई।पंखों की नीलामी बंद होने से सोना मिलना बंद हो गया,उल्टे पहले जमा हुए उसके सोने का हिसाब लिया जाने लगा।
बीच बीच में अन्य परिंदा - समूहों की तरफ से आक्रामक उड़ानें भड़ी जातीं।एक तरफ घायल परिंदों की सुश्रुषा,दूसरी तरफ दुश्मनों से अपने समूह और सीमा की सुरक्षा में सरदार अपनी मंडली के साथ अहर्निश जुटा हुआ था।उधर सोनी नित नए बवाल उठाती।कभी धरना - प्रदर्शन कराती,तो कभी सरदार की सुरक्षा - प्रणाली पर सवाल उठाती।उसके चिड़े -चिड़ी अलग कुछ चिड़ों - चिड़ियों को लेकर उत्पात मताया करते।'
' अरे भई!यह तो बड़ा बुरा हाल बयां किया तुमने।' दूसरे मित्र ने आंखें फैलाते हुए कहा।
' इतना ही नहीं मेरे भाई, सोनी खुद को उस परिंदा - समूह की मालकिन समझती।अनाप शनाप प्रलाप भी करती।'
' मुफ्त की मारी,बेचारी सोनी और बेचारी उसकी अनुगामिनी परिंदा - मंडली!' दूसरे मित्र ने उच्छवास लिया।
" मौलिक व अप्रकाशित"
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लघुकथा की सराहना हेतु आपका आभार,नमन आदरणीय समर जी।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
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