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गंगा जी ने जिस दिवस, धरे धरा पर पाँव
माने गंगा दशहरा, मिलकर पूरा गाँव।१।
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विष्णुपाद से जो निकल, बैठी शंकर भाल
प्रकट रूप में फिर चली, गोमुख से बंगाल।२।
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करती मोक्ष प्रदान है, भवसागर से तार
भागीरथ तप से हुआ, हम सबका उद्धार।३।
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गोमुख गंगा धाम है, चार धाम में एक
जिसके दर्शन से मिटें, मन के पाप अनेक।४।
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अमृत जिसका नीर है, जीवन का आधार
अंत समय जो ये मिले, खुले स्वर्ग का द्वार।५।
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अद्भुत गंगाजल कभी, पड़ें नहीं कीटाणु
मारे औषधि युक्त गुण, तनमन के रोगाणु।६।
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किया भगीरथ यत्न का, गंगा ने सत्कार
सगर पुत्र के साथ ही, कर सबका उद्धार।७।
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पावन  गंगा  दशहरा, है  भारत  का  पर्व
जिस पर करता है सदा, धर्म सनातन गर्व।८।

मौलिक अप्रकाशित

© लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 2, 2020 at 3:58pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on June 2, 2020 at 3:16pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 5:34pm

आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on June 1, 2020 at 5:24pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बढ़िया दोहे मन प्रसन्न हो गया सादर बधाई कुबूल कीजिए

कृपया ध्यान दे...

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