रंग काला :
जाने कितने रंग सृष्टि के
अद्भुत लेकिन है रंग काला
काली अलकें काली पलकें
काले नयन लगें मधुशाला
काला भँवरा
हुआ मतवाला
काला टीका नज़र उतारे
काला धागा पाँव सँवारे
काली रैना चंदा ढूंढें
अपना शिवाला
काले में हैं सत्य के साये
हर उजास के पाप समाए
रैन कुटीर सृष्टि की शाला
रंग सपनों को
भाए काला
काले से तो भय व्यर्थ है
इसमें जीवन का अर्थ है
आदि अंत का ये है प्याला
हर यथार्थ को
इसने पाला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। कुछ तकनीकी व्यवधान के चलते मैं आभार व्यक्त न कर सका। इसके लिए क्षमा चाहूंगा। सादर ।
आदरणीय Samar kabeer जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। कुछ तकनीकी व्यवधान के चलते मैं आभार व्यक्त न कर सका। इसके लिए क्षमा चाहूंगा। सादर ।
आद0 Rakshita Singh जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। कुछ तकनीकी व्यवधान के चलते मैं आभार व्यक्त न कर सका। इसके लिए क्षमा चाहूंगा। सादर ।
आ. भाई सुशील जी, अच्छी कविता हुई है। हार्दिक बधाई ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी कविता हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशील जी नमस्कार,
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ...
वास्तव में काले रंग की यह भी विशेषता है कि इस पर कोई और रंग नहीं चढ़ता !
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