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किचन क्वीन(लघुकथा)


दुल्हन ने किचन की कमान संभाली। मितव्ययिता के आकांक्षी घरवाले बड़ी बड़ी उम्मीदें पाले हुए थे कि अब कुछ बचत होगी।बजट सुख दायक होगा। अन्य कार्यों के लिए कुछ धन बचाया जा सकेगा।......
फिर कुछ दिनों के बाद जब खाने का जायका मुंह चिढ़ा ने लग,तब सास ने एक दिन राशन के बरतन देखे। देखती ही रह गई।नमक - चीनी की पहचान मुश्किल थी।चावल - दाल ग ले मिलते दिखे। जो बरतन सामने थे,वे लगभग भरे थे, पीछे वाले रिक्तप्राय।वह किचन प्रबंधन का नवीन गुर समझ गई।खाने के स्वाद की माधुर्य मिली मिर्ची मुखर हो चली।
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:15pm

आभार आ.लक्ष्मण जी।

Comment by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:14pm

आभार आदरणीय समर जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:52pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on March 17, 2020 at 6:57am

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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