For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल नंबर-3

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(मक़्ते में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नज़र अंदाज़ कर दें)

रफ़्ता रफ़्ता सारी अफ़वाहें कहानी हो गईं
तल्ख़ियाँ इतनी बढ़ीं रेशा दवानी हो गईं

हिज्र की रातों में इतनी बार उनके ख़त पढ़े
याद मुझको सारी तहरीरें ज़बानी हो गईं

हाल वो देखा ग़ज़ल का आज यारो,शर्म से
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की भी रूहें पानी पानी हो गईं

क़ह्र को बाँधें क़हर वो और टोको तो कहें
शे'र कहने की ये तरकीबें पुरानी हो गईं

जानते हो ख़ूब यारो ओबीओ के मंच पर
जिसने सीखा उसकी ग़ज़लें जाविदानी हो गईं

ज़ह्नियत का है ये झगड़ा हिन्दी उर्दू का नहीं
छोड़िये अब ये "समर" बातें पुरानी हो गईं
________

रेशा दवानी :- फ़साद
तल्ख़ियाँ :- कड़वाहटें

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 9:45pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 9:42pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 9:41pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 9:39pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Ravi Shukla on April 18, 2017 at 3:29pm

आदरणीय समर साहब आदाब , आपकी गजल आए कई दिन हो गये शिरकत आज कर रहे है उम्‍मीद है दफ्तर की मसरूफियत आप समझ गये हाेंगे शह्र से बाहर ज्‍यादा रहना पड़ा ।  आदरणीय नीलेश जी की बात से सहमत है हम हम लाेग एक गजल पर दिमाग लगा कर थक गये और आप लगातार तीन गजल कह गये और एक से बढ़कर एक इसके लिये दिली मुबारक बाद और दाद हाजिर है । आपकी तीनों ही गजलों में

हिज्र की रातों में इतनी बार उनके ख़त पढ़े
याद मुझको सारी तहरीरें ज़बानी हो गईं

ये शेर कमोबेश सभीको पसंद आया है और सबने ये रेंखाकित भी किया है । क्‍योंकि ये शेर है भी कमाल का हम ये मानते है हर शख्‍स भीतर से कहीं न कहीं आशिक जरूर होता है चाहे वो सांसारिक हो या हकीकी इश्‍क पर होता जरूर है हमें भी है ( हमने कह दिया कोई न कहे भले न स्‍वीकार करे ) यही इश्‍क उसे शाइरी के नजदीक भी लाता है इसी अहसास को जब वो किसी शेर में साकार होते देखता है तो उसे लगता है अरे ये तो उसके दिल की बात कह दी गई है और इस आनंदानभूति में ही गजल की सार्थकता है । इस नजरिये से आपकी इस तीसरी गजल के का ये शेर हमें तीनो ही गजलो में सबसे जियादा पसंद आया बहुत बहुत मुबारक बाद आपको इस शेर के लिये । गजल के बाकी शेर भी अपने अर्थ तक पंहुचने में कामयाब है उसके लिये भी मुबारक बाद कुबूल करें । आपका सान्ध्यि इसी प्रकार मंच को मिलता रहे । ओ बी ओ जिंदा बाद । सादर

Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:38am
आद0 समर कबीर साहब आदाब, बहुत बेहतरीन गजल, वाह वाह वाह वाह,नमन आपको।खूबसूरत ग़ज़ल पर मूबरकबाद पेश करता हूँ।
Comment by Mahendra Kumar on April 13, 2017 at 7:50pm
आदरणीय समर कबीर सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल लगी आपकी। शेर दर शेर मुबारक़बाद पेश करता हूँ। दूसरा शेर विशेष रूप से पसन्द आया। इसके लिए अलग से विशेष बधाई। पाँचवे शेर के ऊला में टंकण त्रुटि से 'यारों' की जगह 'यारो' हो गया है। देख लीजिएगा। बहुत-बहुत बधाई। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 12, 2017 at 11:13pm
रफ़्ता रफ़्ता सारी अफ़वाहें कहानी हो गईं
तल्ख़ियाँ इतनी बढ़ीं रेशा दवानी हो गईं
हिज्र की रातों में इतनी बार उनके ख़त पढ़े
याद मुझको सारी तहरीरें ज़बानी हो गईं....वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल हुई..सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 12, 2017 at 10:43am

//'तुझे बंदा उसे रब जानता हूँ
मैं इक फ़नकार हूँ,सब जानता हूँ'

'तबीअत में नहीं शुहरत पसंदी
वगरना सारे कर्तब जानता हूँ'

'समझ लेता हूँ अब तेरे इशारे
तिरे कहने का मतलब जानता हूँ'//

कहो कहने को फिर बाकी रहा क्या ? 

मगर कहना है क्या, कब ? .. जानता हूँ !  

सादर

Comment by Samar kabeer on April 12, 2017 at 12:11am
जनाब अनुराग वशिष्ठ जी आदाब,आपको एक शैर पसंद आया,इसके लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
कौन दुष्यंत कुमार ? कैसा शह्र ? कृपया ग़ज़ल के बारे में ही बात करें तो बहतर होगा । कृपया जनाब सौरभ पाण्डेय जी की टिप्पणी पढ़ लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ++++++   आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
22 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service