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ग़ज़ल (जनवरी के मास की)

2122 2122 2122 212

जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।

ईशवीं उन्नीस सौ पंचास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।

आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।

सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
हक़ बराबर का हमारी एकता का राज है।

राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखे झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी ऐसी गाज़ है।

संविधान_इस देश की अस्मत, सुरक्षा का कवच,
सब सुरक्षित देश में सर पे ये जब तक ताज है।

मान दें सम्मान दें गणतन्त्र को नित कर 'नमन',
ये रहे हरदम सुरक्षित ये सभी का काज है।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 29, 2017 at 4:20pm

आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी ,गणतंत्र के ऊपर लिखी ग़ज़ल देश भक्ति से ओतप्रोत है, इसके लिए बधाई स्वीकार करें |

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 28, 2017 at 10:06am
मोहम्मद आरिफ साहिब इस ग़ज़ल के लिए हौसला आफजाई करने के लिए दिल से शुक्रिया।
Comment by Mohammed Arif on January 27, 2017 at 8:41pm
आदरणीय वासुदेवजी, गणतंत्रीय मूल्यों को बखान करती ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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