For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2010 की अगस्त क्रांति Copyright ©

जैसे ही अगस्त आया है

वैसे ही सब कवियों ने

तिरंगा उठाया है

और स्याही में कलम डुबो के

सब को यह दिलासा दिलाया है

कि “हम भूले नहीं हैं

भारत हमारा है”

काला है , गोरा है

अभिशप्त है तो क्या हुआ

दरिद्र है तो क्या हुआ

भ्रष्ट है तो क्या हुआ

बाकी न सही पर

अगस्त आते ही हमे याद

ज़रूर आया है

भारत हमारा है।



शब्दावली से सुसज्जित

हर अगस्त सब लेखक, कवी

यह एक बार अवश्य याद दिलाते हैं

कि हम कितने पिछड़े हैं और

हमारा कैसा चेहरा है

अगस्त क्रांति की लहर जो दौड़े

पंद्रह को समाप्त हो जाती

उसके बाद सब गूंगे, सब बहरे हैं

जिन्होंने पूरा जीवन न्योछावर कर दिया

मिटटी पे

लहू को पानी की तरह बहाया

लुटा दी जवानी इस धरती पर

उनको बस पंद्रह दिन यह याद करें

उनके साहस और बलिदान की गाथा गायें

और इतिहास के पन्नो पर, जितना कम से कम हो सकता है

बस उतना ही समय “बर्बाद” करें।



हे पंडितों , हे कवियों ओर लेखको

ज़रा अपनी कला और निखारो

उनके बलिदान की कलम को

उनके लहू में दुबोके

उस खुशबू को बिखारो

बात न करो कभी भी कि क्या बुरा है

इस देश में

बात करो बस उत्थान की

शब्द जाल को ऐसे बुनलो कि

पुनः क्रान्ति की होड़ लगे

आज भी भारतीय के भीतर

बलिदान का भाव जगे

और स्वतंत्रता दिवस हर दिन

मनाये

वो दिया दिन रात जले



जन्मसिद्ध अधिकार स्वतंत्रता

के लिए कई शव गिरे हैं

कई मन राख विसर्जित हुई है

कई आत्माएं परमात्मा बनी है

स्मृति उनकी हर पल करना और

उस स्मृति से कुछ सीख समझ के

इस देश को जागरूक हर दिन करना

यह ध्येह है कवियों का

और यह ही माध्यम है

यह वो ध्वनि है

जो गूँज उठेगी सत्तावन सी

यदि हर पल उसे गुनगुनायेंगे

और खड्ग से लहरायेंगे शब्द

यदि हम उन्हें सब कानो तक हर पल

पहुँचायेंगे



जिस ध्वज के लिए बैरागी हो चला था

एक समय यूवा,

उस यूवा को आज हम लोगों को

पुनः जगाना है

जो मात्र एक कपडा बनकर एह गया है

उसे पुनः राष्ट्रीय ध्वज का

दर्ज़ा दिलाना है

यह दायित्व हम कवियों पे है

कलम से बस उम्मीद निकले

कटाक्ष के बाण न निकले

प्रत्यंचा की गूँज बस निकले

आने वाला समय किस ओर ढलता है

हमारा भविष्य किस दिशा में निकलता है

इसके उत्तरदायी हम कवी, हम लेखक हैं

हमारे हर शब्द, हर विचार

मार्गदर्शक बने

जो गलतियाँ इतिहास में हुई है हम से

वो आगे न दोहराईं जाएँ



तो आओ प्रण करें कि

केवल स्वतंत्रता दिवस

भर में ही हम न भारत को

याद करें

पर सोचें हर पल इसको कैसे बदलें

कैसे इसका श्रींगार करें

शब्दों से ऐसे प्रतिपल याद दिलाएं

हम वर्त्तमान को

कि बदलें आओ भारत का भविष्य

और सही रूप से

स्वतंत्र हो जाएँ

स्वतंत्र हो जाएँ

स्वतंत्र हो जाएँ. !

Views: 499

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अनुपम ध्यानी on August 9, 2010 at 10:10pm
Dhanyavaad Verma Jee
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 8:45pm
विचारप्रधान सामयिक रचना. बधाई.
Comment by अनुपम ध्यानी on August 8, 2010 at 2:16am
dhanyavaad Panday Jee aur Asha jee
Comment by asha pandey ojha on August 7, 2010 at 12:41pm
अनुपम जी सर्वप्रथम तो ओपन बुक परिवार का सदस्या बने पर आपका हार्दिक स्वगत् !!
बहुत ही सार्थक कविता लिखी है आपने देश प्रेम के ज़ज़्बे से लबरेज़ है एसका एक एक अल्फ़ाज़ उसके लिए आप को साधुवाद इसी ज़ज़्बे की देश के बच्चे बच्चे के मनमे पनपने की दरकार है तभी हम अपने देश को बुलन्दी पर पंहुचा सकते हैं .. बहुत सुंदर कविता के लिए बधाई
Comment by baban pandey on August 6, 2010 at 12:17pm
bahut hi khoobsurat...we should to be indian ..whatever it is .
Comment by अनुपम ध्यानी on August 6, 2010 at 7:07am
Dhanyavaad mitron!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 5, 2010 at 5:08pm
खुबसूरत रचना , उम्द्दा ख्यालात, ज्वलंत विचार, सुंदर शब्द विन्यास, सब मिलाकर एक बेहतरीन कविता , बधाई अनुपम जी ,
Comment by Rash Bihari Ravi on August 5, 2010 at 1:55pm
bahut khubsurat manmohak
Comment by satish mapatpuri on August 5, 2010 at 1:06pm
यह दायित्व हम कवियों पे है

कलम से बस उम्मीद निकले

कटाक्ष के बाण न निकले

प्रत्यंचा की गूँज बस निकले

आने वाला समय किस ओर ढलता है
अनुपम जी, स्वागत, बहुत सुलझे एवम संयमित ख्याल है, बधाई.
Comment by Admin on August 5, 2010 at 10:06am
आदरणीय अनुपम ध्यानी जी,प्रणाम,
सर्वप्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपकी पहली रचना का ह्रदय से स्वागत करते हैं, बहुत ही सुंदर और ससक्त रचना आपने प्रस्तुत की है, कवियों और लेखको से जो आपने अपनी कविता के माध्यम से निवेदन किया है वो काबिले तारीफ़ है , आपकी भावना और संवेदनशीलता आपकी कविता से उजागर होती है तथा मैं भी आपकी कविता मे उठाई गई बातों से सहमत हूँ , बहुत बहुत बधाई इस उम्दा अभिव्यक्ति के लिये , धन्यवाद,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया छंद  _____ सावन रिमझिम आ गया, सड़कें बनतीं ताल। पैदल लोगों का हुआ, बड़ा बुरा है…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया * पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात। सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।। दिवस…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात।  टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service