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झंझावात
*******

झंझावात कितना प्रबल है!

दिशाएँ हो गईं निस्तब्ध,

नभ हो गया नि:शब्द,

सरस मधुर पुरवाई अपना दिखा गई भुजबल है।

झंझावात कितना प्रबल है!

शाखें हैं टूटी-टूटी,

सुमनों की किस्मत रूठी,

टप-टप बूँदों ने बेध दिया हर पत्ती का अंतस्थल है!

झंझावात कितना प्रबल है!

पंछी तिनके अब जुटा रहे,

चोटिल भावों को मिटा रहे,

दिन बीत गया अब रात हुई, यह जीवन नहीं सरल है!

झंझावात कितना प्रबल है!

-- क़मर जौनपुरी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2018 at 2:20pm

आ. भाई कमर जी, अच्छी कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by क़मर जौनपुरी on November 20, 2018 at 10:18am

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।

Comment by Samar kabeer on November 19, 2018 at 2:28pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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