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गज़ल -11( बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये)

2122 2122 2122 212

बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये

अब यहाँ फूटेगा बातों का बताशा देखिये//१

संग नेता के कुलाचें भर रही जो भीड़ ये

घर पहुंचकर इसके जीवन की हताशा देखिये //२

हर गली हर मोड़ पे भूखों की लंबी फ़ौज़ है

बज रहा है खूब अच्छे दिन का ताशा देखिये //३

ज़ुल्म का तूफ़ां कभी ठहरा नहीं है देर तक

हर नज़र में है यही मज़बूत आशा देखिये//४

सामने सागर है इसको है पता कुछ भी नहीं

भागता घोड़े पे चढ़कर बेतहाशा देखिये //५

-- क़मर जौनपुरी

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Comment by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 9:29am
शुक्रिया मोहतरम
Comment by Samar kabeer on December 2, 2018 at 8:41am

'  अब यहां फूटेगा बातों का बताशा देखिये'

ये मिसरा ठीक है ।

Comment by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 8:33am

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब इतनी बारीकी से इस्लाह करने के लिए।

अगर यहाँ यह मिसरा रख रख दिया जाए तो कैसा रहेगा-

"अब यहां फूटेगा बातों का बताशा देखिये'।

Comment by Samar kabeer on December 1, 2018 at 8:04pm

"पासा" क़ाफ़िया ग़लत हो जाएगा,"शा"की बंदिश है न?

Comment by क़मर जौनपुरी on December 1, 2018 at 5:13pm

जनाब राज़ साहब और जनाब मो. आरिफ साहब आप दोनों का ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by क़मर जौनपुरी on December 1, 2018 at 5:12pm

इस्लाह के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।

पासा लिखना था ग़लती से पाशा लिखा गया है। "पासा फेंकना" के अर्थ में।

जादुगर में सोचा दु पर मात्रा गिराने से काम चल जाएगा। मिसरे को गद्यात्मक रखने का प्रयास किया था। आप का बताया हुआ मिसरा ज़ेहन में नहीं आया था।

Comment by Samar kabeer on December 1, 2018 at 2:53pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'  जादुगर फेंका है जुमले का ये पाशा देखिये'

इस मिसरे में "पाशा" शब्द का क्या अर्थ लिया है आपने,दूसरी बात ये कि 'जादूगर' शब्द को आपने वज़्न पूरा करने के लिए "जादुगर" लिखा है,ये मिसरा यूँ भी कह सकते थे:-

'फेंका जादूगर ने है जुमले का पाशा देखिये'

Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:02am

आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Mohammed Arif on November 30, 2018 at 1:22pm

आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब,

                       बहुत ही उम्दा शे'रों से सुसज्जित ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद कुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

Comment by क़मर जौनपुरी on November 30, 2018 at 10:56am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब ग़ज़ल में शिरकत के लिए और हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

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