For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इतने सारे फंदे- डा 0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

बहुत से फंदे है

उनके पास

छोटे-बड़े नागपाश

इन फंदों में

नहीं फंसती उनकी गर्दन

जो इसे हाथ में लेकर

मौज में घुमाते है

लहराते है

किसी गरीब को देखकर

फुंकारता है यह

काढता है फन 

किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा

लिपटता है यह फंदा

अक्सर किसी निरीह के  

गले में कसता है

किसी विषधर के मानिंद

और चटका देता है

गले की हड्डियाँ

किसी जल्लाद की भांति 

 

मुस्कराता है यह फंदा

हंसता है वितृष्ण हंसी

देखता है अपने 

उन आकाओं की ओर

जिनके हाथ में है उसकी डोर

जिनके परस से

ढीला पड़ जाता है वह

किसी मरे हुये सांप की तरह

जैसे धूप तपाती है गरीब को

जैसे शीत कंपाती है गरीब को 

जैसे दरिद्रता सताती है गरीब को

जैसे भूख मार देती है गरीब को

वैसा ही दुश्मन-ए-गरीब है यह फंदा

नाचता है यह

अमीरों की उंगली पर

काँपता है यह पावर के नाम से

थरथराता है यह उन सारी ताकतों से

जिनमे है हौसला

इसे खंड-खंड करने का

इसको तोड़ने का अपरूप करने का

अपने पावर का बटन

दबाये रखने का

 

पर इसे तोड़ना भी

एक अपराध है   

अपराध कर हर कोई नहीं छूटता

किसी लुटरे को कोई नहीं लूटता

वैसे ही फंदे को

अशक्त नही मापते

मेरे जैसे निर्बल

इसकी हर बला से कांपते

एक दिन आखिर

वह मुझसे टकरा गया

बोला –‘बच नहीं पाओगे ,

इतनी सारे फंदे हैं,

किसी में नप जाओगे

घटिया से कवि हो

कहीं भी खप जाओगे

मुझको देखो मैं 

फंदों में एक फंदा हूँ  

मुझ पर विश्वास करो

पूरी तरह अँधा हूँ

कोई मुझ अंधे से ज्यों ही टकराता है

और उसमे पावर का करेंट नहीं आता है

बस मैं चिपक जाता हूँ

 

मैं  कोई माफिया नहीं

न कोई अफलातून हूँ

न ही किसी पागल का

लिखा मजमून हूँ

मैं कुछ दरिन्दों की

नसों का बहता खून हूँ

फंदा तो आचरण है

मैं देश का कानून  हूँ  !

( मौलिक व् अप्रकाशित ) 

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 7:19pm

एक दिन आखिर

वह मुझसे टकरा गया

बोला –‘बच नहीं पाओगे ,

इतनी सारे फंदे हैं,

किसी में नप जाओगे

घटिया से कवि हो

कहीं भी खप जाओगे.......आपकी रचना का फंदा भी देर तक सोचने के लिए विवश कर रहा है आदरणीय बधाई इस रचना पर सादर 

Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 5:52pm

बेहद कठोर भाव लिए फंदे का , अंदर तक मन सिहर उठा है पढ़कर।  सादर नमन 

Comment by Samar kabeer on October 25, 2015 at 11:13pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,बहुत अच्छे मौज़ू पर क़लम उठाया है आपने,कविता की तवालत पाठक को बाँधे रखने में कामयाब है और ये आपकी लेखनी का जादू है जो सर चढ़कर बोल रहा है ,इस अच्छी कविता के लिये दिल की गहराईयों से दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ,क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Rahila on October 25, 2015 at 9:38pm
बहुत, बहुत ही बेहतरीन। अंत में जाकर समझ पाई कि इतना गुणगान आखिर हो किस का रहा है । बहुत सुन्दर, आदरणीय गोपाल नारायण जी । सादर नमन आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service