For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)

1222 1222 1222 1222
मदारिस हैं, मसाजिद, मैकदे हैं, कारख़ाने हैं।
हमारी ज़िन्दगी में और भी बाज़ार आने हैं।
ये लावारिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं,
जताने इख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं।
मैं मरना चाहता हूँ और वो कहते हैं जीता रह,
उन्हीं का हुक़्म मेरी धड़कनें हर बार माने हैं।
दुःशासन, कर्ण, अर्जुन, कृष्ण, शकुनि, द्रोण के जैसे,
अभी तेरी कहानी में कई किरदार आने हैं।
चलन पर वो हमारे देखिए, तनक़ीद करते हैं,
कि जिनकी कीमतें ख़ुद ही के घर में चार आने हैं।
अभी इस दर्द, आँसू और घुटन को पेशगी समझो,
मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं।
बहार आने को है, बारूद की ख़ुश्बू फ़ज़ा में है,
यही बाकी है शाख़ों पे भी अब अँगार आने हैं।
मौलिक/अप्रकाशित ।

Views: 1182

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on February 2, 2019 at 11:38am

बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।

सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on February 2, 2019 at 6:44am

आद0 बलराम जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई देता हूँ। 

Comment by Samar kabeer on February 1, 2019 at 9:37pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मदरसे, मस्जिदें हैं, मैक़दे हैं, कारख़ाने हैं'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "मद-रसे"और इसका वज़्न 212 है,इसी तरह 'मस्जिद' का बहुवचन "मसाजिद" होता है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'मदारिस हैं,मसाजिद,मैकदे हैं कारख़ाने हैं'

'ये लाबरिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं'

इस मिसरे में 'लाबरिस' को "लावारिस" कर लें,एक जानकारी और देना चाहूँग़ा कि देवनागरी के हिसाब से इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,लेकिन उर्दू के हिसाब से नहीं है ।

'जताने अख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं'

इस मिसरे में 'अख़्तियार' को "इख़्तियार" कर लें ।

'उन्हीं का हुक़्म मेरी धड़कनें हर बार माने हैं'

इस मिसरे में 'धड़कनें' बहुवचन है,इस हिसाब से 'माने'  की जगह क़ाफ़िया "मानें" हो रहा है,ग़ौर करें ।

'हमारे चाल चलनों पर वो अब तनक़ीद करते हैं'

इस मिसरे में 'चलनों' शब्द उचित नहीं इस मिसरे को आप चाहें तो यूँ कर सकते हैं:-

'चलन पर वो हमारे,देखिये तनक़ीद करते हैं'

बाक़ी शुभ शुभ ।

'अभी तलवार आई है, अभी सरशार आने हैं'

इस मिसरे में आपने 'सरशार' का क्या अर्थ लिया है?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2019 at 5:56am

आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
23 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service