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इन्साफ का हिसाब लगाया करे कोई।
होता कहीं तलाक़ हलाला करे कोई।।

उनको तो अपने वोट से मतलब था दोस्तों ।
जिन्दा रखे कोई भी या मारा करे कोई।।

मजहब को नोच नोच के बाबा वो खा गया ।
बगुला भगत के भेष में धोका करे कोई ।।

लूटी गई हैं ख़ूब गरीबों की झोलियाँ ।
हम से न दूर और निवाला करे कोई ।।

सत्ता में बैठ कर वो बहुत माल खा रहा ।
यह बात भी कहीं तो उछाला करे कोई ।।

आ जाइये हुजूर जरा अब ज़मीन पर ।
कब तक ज़मीं से चाँद निहारा करे कोई ।।

ख़ुशियाँ हज़ार लौट के आ जायेंगीं ज़रूर ।
थोड़ा सा बस्तियों में उजाला करे कोई ।।

मंदिर में सर झुकाएं या मस्ज़िद में सज़दा हो ।
लेकिन ख़ुदा को दिल में भी ढूढा करे कोई ।।

इतना भी मत सहो कि सितम दिलही तोड़ दे ।
तुमको यतीम जान सताया करे कोई ।।

इजहारे इश्क़ आप नही कीजिये जनाब ।
इस उम्र में न साथ गुजारा करे कोई ।।

वो मैकदे को पी के लियाकत दिखाएंगे ।
बस मुफ्त में ही जाम पिलाया करे कोई ।।

बूढा हुआ है बाप ज़रा शर्म तो करो ।
कब तक तुम्हारा बोझ उठाया करे कोई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on July 14, 2018 at 10:58am
इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 13, 2018 at 5:17pm

आ0 बसन्त कुमार साहब बहुत बहुत आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 13, 2018 at 5:16pm

आदारणीया नीलम उपाध्याय जी सादर नमन रचना तक आने के लिए सप्रेम आभार ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 4:34pm

वाह बेहद लाजबाब रचना आदरणीय, आनन्द आ गया 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 13, 2018 at 3:43pm

आदरणीय  नवीन मणि त्रिपाठी जी, नमस्कार।  सम-सामयिक विषय पर बहुत ही शानदार  रचना के लिए मुबारकबाद।  

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