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हृदय-सम्बन्ध ...क्षणिकाएँ (५-८)

हृदय-सम्बन्ध - ५

संकोच,  घबराहट

ढुलता  अश्रुजल

हर  प्रवाह  के  नीचे

एक  और  प्रवाह

पता नहीं भूचाल था वह, या

था कोई भीषण प्रकम्पक तूफ़ान

दुर्दम  मझधार, छूट  गई  पतवार

क्या  इतना  दुर्बल  था  प्यार ?

           ------

हृदय-सम्बन्ध - ६

विचित्र अनुभव ...

किसी काल्पनिक भय का

विराटकाय  रूप

मौत की आखिरी मात-सा

विषमय  अभिषाप-सा

मानो प्रलय से पहले रच रहा षडयत्रं 

तमोमय  यमराज  खड़ा  द्वार  पर

             ------

हृदय-सम्बन्ध - ७

आँसूओं  से  डबडबाई  आँखें

जानता हूँ बहुत कठिन थे वह पल

घुटते  सुबकते  ओठों  पर तुम्हारे

बुलबुलों  की  तरह  काँपते-फूटते

विदा में तुम्हारे वह अंतिम शब्द ...

"मेरे  प्यार

तुम चले जाओ"

             -----

हृदय-सम्बन्ध - ८

व्यथा में घुली नामहीन

दर्द भरी गहरी पुकार

पता नहीं कहाँ रह गई है

जीवन की व्यक्तित्वहीन नाव

थम गई है धड़कन कब से

बुझ चुके हैं अब सब तारे भी

सुन, मेरी  बेचैन  ज़िन्दगी

सो जा... नींद आ रही होगी

             -----

---  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1004

Comment

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Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:28am

//आपकी रचना को आँखें ही नहीं दिल पढ़ता है मेरा //...

यह मान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय बहन राजेश जी

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:27am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:26am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:25am

 आदरणीय तस्दीक अहमद जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:23am

//बहुत उम्दा क्षणिकाएं,हर क्षणिका अपने आप में एक कहानी बयान कर रही है//

इन सुन्दर शब्दों से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर जी। 

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:21am

//प्रेम की तीव्र व्यंजना को रेखांकित करती बहुत ही सशक्त रचनाँ//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 7, 2018 at 11:19pm

आदरणीय विजय निकोर जी , विछोह , एकाकीपन, किसी दुर्दम मझधार में पतवार का हाथ से छूट जाना , जैसी विकत परिस्थितियों को बहुत सुन्दर शब्द मिले। बहुत सुन्दर , गंभीर प्रस्तुति के लिए बधाई। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 6:21pm

कुछ एक टंकड़ त्रुटियां रह गई हैं।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 6:14pm

कुछ रचनायें और क्षणिकायें ऐसी होती हैं जिन्हें जितनी बार ध्यान से पढ़ें, उतने ही गहरे भाव समझ में आने लगते हैं। ऐसी ही क्षणिका सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय विजय निकोरे साहिब।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 4, 2018 at 1:30pm

आपकी हर रचना दिल को छूती है आदरणीय बस क्या कहूँ आपकी रचना को आँखें ही नहीं दिल पढ़ता है मेरा .

बहुत..... बहुत ....बहुत .....बधाई आद० विजय निकोर जी .आपका जब भी कोई संग्रह निकले मुझ तक जरूर पँहुचाइयेगा मेरी गुज़ारिश है आपसे .

कृपया ध्यान दे...

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