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ग़ज़ल नूर की-हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा

2122 /1122 /1122 /22 (112)
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हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा 
दिल पे टूटेंगे सितम..... दर्द से भर आएगा.
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एक दूजे को जो देखेंगे अगर हम यूँ ही 
किसी चेहरे का किसी पर तो असर आएगा.
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अपनी आँखों से हटा ले ये अना की पट्टी
तुझ को हर शख्स तेरा अक्स नज़र आएगा.
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सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,   
उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा?  
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रूह को अश्क-ए-नदामत से कभी धो कर देख,   
हुस्न हस्ती का तेरी और निखर आएगा.
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कोई मंज़िल ही नहीं है तो कहाँ पहुँचेंगे
इस सफ़र बाद कोई और सफ़र आएगा

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नूर बुलवाए कभी “नूर” को मिलने के लिए
जिस्म की ख़ाक यहीं राख में धर आएगा. 
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निलेश “नूर”
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 823

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:54am

शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:53am

शुक्रिया आ. महेंद्र  जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:53am

शुक्रिया आ. भाई सुरेन्द्रनाथ सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:53am

शुक्रिया आ. भाई दिनेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:53am

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:52am

शुक्रिया आ. तस्दीक अहमद जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:52am

शुक्रिया आ बलराम धाकड़ जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2017 at 7:23pm

आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Mahendra Kumar on December 27, 2017 at 11:26am

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है आ. निलेश सर. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 8:52am

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। बहुत खूब। शैर दर शैर मुबारकबाद कुबूल फरमायें। सादर

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