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जैसे ही आशिया घर में घुसी उसे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ आयी. चारो तरफ देखते हुए उसकी नज़र किनारे मेज पर रखे एक पिंजरे पर पड़ी जिसमें कई सारे रंगीन पक्षी कूद फांद कर रहे थे. उसने उछलते हुए पिंजरे की तरफ रुख किया और जब तक वह पिंजरे के पास पहुंचती, सामने से अब्बू आते दिखे.
"कितने प्यारे पक्षी हैं न आशिया, तुम्हारे लिए ही लाये हैं मैंने", अब्बू ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.
आशिया ने हँसते हुए अब्बू को शुक्रिया कहा और पिंजरे के पास खड़ी हो गयी. एक से एक खूबसूरत और प्यारे पक्षी, उसे लगा जैसे सारे जहाँ की खुशियां उसे मिल गयी हो.
वह खड़ी खड़ी उनको देखकर प्रसन्न हो रही थी कि उसके कानों में अब्बू की आवाज़ आयी "इतनी देर लगती है चाय लाने में, किसी भी काम को तो ठीक से किया करो".
उसने पलट कर देखा, अम्मी मायूस सी चाय का प्याला लेकर खड़ी थीं. कल रात की बात भी उसे याद आ गयी जब अब्बू ने खाने के लिए अम्मी को बेतरह डांटा था. अम्मी हमेशा की तरह चुपचाप प्याली रखकर वापस जाने लगीं. जब से उसे याद था, कभी भी अम्मी ने अब्बू की किसी बात का विरोध नहीं किया था और उनकी हर फटकार को वह चुपचाप सह लेती थीं. एक बार उसने कहा भी था कि आप ये सब चुपचाप क्यूँ सह लेती हैं तो अम्मी ने फीकी हंसी हँसते हुए बात टाल दी थी.
उसने एक नज़र वापस पिंजरे में फड़फड़ा रही चिड़ियों को देखा और पिंजरा उठाकर बाहर निकल गयी. पिंजरे से चिड़ियों को उड़ाते हुए उसके दिमाग में अम्मी का मुस्कुराता चेहरा तैर रहा था.
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Neelam Upadhyaya on December 15, 2017 at 11:31am

"पिंजरे से चिड़ियों को उड़ाते हुए उसके दिमाग में अम्मी का मुस्कुराता चेहरा तैर रहा था" घरों में स्त्री के अस्तित्व के सम्मान को बहुत ही सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 14, 2017 at 7:17pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। बहुत ही मासूमियत भरी लघुकथा।

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