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मेरा कच्चा मकान क्या करता (ग़ज़ल 'राज')

२१२२  १२१२    २२

बात खाली मकान क्या करता

दास्ताँ वो बयान क्या करता 

 

पंख कमजोर हो गये मेरे  

लेके अब  आसमान क्या करता 

उसकी  सीरत ने छीन ली सूरत

उसपे सिंघारदान क्या करता 

 

रूठ जाते मेरे सभी अपने

चढ़के ऊँचे मचान क्या करता

 

नींव में झूठ की लगी दीमक 

लेके ऐसी दुकान क्या करता

 

बाढ़ में ढह गये महल कितने    

मेरा कच्चा मकान क्या करता

 

मौन सब थे निजाम की सुनकर

मैं चलाकर  जुबान क्या करता

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:31pm

प्रिय कल्पना भट्ट जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:31pm

आद० नरेंद्र कुमार सिंह जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:30pm

आद० बृजेश कुमार 'ब्रज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:27pm

मोहतरम जनाब खुर्शीद खैराडी जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:26pm

आद० सुरेन्द्र नाथ जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:24pm

आद० महेंद्र कुमार जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 7:23pm

आद० डॉ. गोपाल नारायण भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |मेरा लिखना सार्थक हो गया |


 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 6:56pm

आदरणीय समर भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |मेरा लिखना सार्थक हो गया | दो तीन दिनों से बाहर गई हुई थी आज ही लौटी हूँ इसलिए पोस्ट पर अभी पँहुची हूँ |



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 6:54pm

आद० डॉ. आशुतोष   जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2017 at 6:49pm

आदरणीय रवि शुक्ल भैया  ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | इस ग़ज़ल के मिसरे बहुत ज्यादा लिखे थे आपकी इस्स्लाह के अनुसार छोटी कर दी |

कृपया ध्यान दे...

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