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ग़ज़ल - किस्से कहानी हो गए

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए

ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए

 

प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,

जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए

 

वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,

आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए

 

सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,

आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए

 

चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,  

वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:15am
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:15am
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 8:55am

आदरणीय Shyam Narain Verma  जी आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2017 at 9:00pm

बहुत खूब आ. बसंत जी ...
बधाई 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 22, 2017 at 8:53pm
अच्छी गज़ल बधाई आखरी शेर के सानी मिसरा में शायद और शब्द लिखना भूल गये।
Comment by narendrasinh chauhan on May 22, 2017 at 6:24pm

बहोत खूब 

Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2017 at 4:21pm
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "

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