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सुख के दुख के हर सांचे में, मिटटी जैसी ढलती माँ

मैं क्या कोई जान न पाया, कब सोती कब जगती माँ

गाँव छोड़कर, गया नगर में, लाल कमाने धन दौलत,

अच्छे दिन की आशा पाले, रही स्वयं को ठगती माँ

दीवाली पर सजते देखे, घर आँगन चौबारे

रहे भागती और दौड़ती, पता नहीं कब सजती माँ

घर के कोने कोने का, दूर अँधेरा करने को,

दीपक में बाती के जैसी, रात रात भर जलती माँ

बेटी और बहू की खातिर, जोड़े जाने क्या क्या तो,

सपने बुनकर अलमारी में, कितने सारे रखती माँ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 22, 2017 at 11:11am

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी  ह्रदय से आभार आपका 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 21, 2017 at 2:36pm
आहा..कितने खूबसूरत भावों की समावेश किया है रचना में..बेहतरीन सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 19, 2017 at 5:28pm

आदरणीय Mohammed Arif जी, आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, अवश्य, इंतजार है,  सुझावों और समीक्षा का विशेष स्वागत एवं आभार 

Comment by Mohammed Arif on May 19, 2017 at 10:39am
आदरणीय बसंत शर्मा जी आदाब, माँ के प्रति अच्छी भावनाएँ व्यक्त हुई है । बधाई स्वीकार करें । छांदसिक दृष्टि से काफी दोष दिख रहें हैं जिन्हें गुणीजन बेहतर तरीक़े से बताएँगे , इंतज़ार करें ।

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