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पडौसी देश के नाम [ कुण्डलियाँ छंद ]

मेरे घर की आग में,,सेंक रहा है हाथ

दूत बने शैतान के , देता उनका साथ

देता उनका साथ ,लगा मति पर  है ताला

ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला

जग पर जाहिर आज ,सभी मंसूबे तेरे

छोड़ लगाना आग ,बाज आ भाई मेरे

 

 

छोड़ें ढुलमुल रीत को ,अब उँगली लें मोड़

रोग पुराना हो रहा ,खोजें दूजा तोड़

खोजें दूजा तोड़ ,नहीं अब मीठी गोली

बातें जफ्फी खूब ,खूब समझाइश हो ली

हमको सकता बाँट ,ख़्वाब उसका ये तोड़ें

सच में हों गंभीर ,महज बातों को छोड़ें

 

मौलिक व् अप्रकाशित   

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Comment

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Comment by Ravi Prabhakar on July 22, 2016 at 8:04am

छंदों के बारे में तो बहुत अधिक नहीं जानता परन्‍तु भावों के स्‍तर पर प्रस्‍तुत रचना सीधे दिल में उतर गई। /ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला/ 'ड्रेगन' शब्‍द अपने आप में ही सारे षडयंत्र की पोल खोल रहा है। बहुत खूब ! /छोड़ें ढुलमुल रीत को ,अब उँगली लें मोड़/ बिल्‍कुल सही कहा कि अब ढुलमुल नीति छोड़कर कड़े कदम उठाने का वक्‍त है और अब वाकई उंगली को मोड़ ही देना चाहिए ताकि उनकी देश को बांटने के मुंगेरी लाल के सपनों को असलियत दिखाई जा सके। बहुत ही सार्थक संदेश देती रचना प्रेषण हेतु असीम शुभामनाएं । सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 21, 2016 at 10:03pm

आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर, दोनों ही कुण्डलिया छंद सामयिक परिस्थिति पर  सुंदर रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by pratibha pande on July 21, 2016 at 8:43pm

प्रयास का अनुमोदन व् उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी     ',समझाइश'   शब्द पर आदरणीय रामबली जी की शंका का आपने समाधान किया  आपका पुनः आभार ...सादर 

Comment by pratibha pande on July 21, 2016 at 8:33pm

  रचना को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार प्रिय राहिला जी 

Comment by pratibha pande on July 21, 2016 at 8:30pm

 प्रयास के छंदमयी अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सतविंदर जी 

Comment by pratibha pande on July 21, 2016 at 8:19pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी , .  बुद्धि' शब्द  को इंगित करने के लिए आपका आभार , परिमार्जन कर दिया गया है , , समझाइश, शब्द पर सुधि  जनों की प्रतीक्षा रहेगी..    रचना पर समय देने के लिए  आपका पुनः आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2016 at 8:16pm

वाह वाह ! आपका छन्दों पर अभ्यास तोषकारी है आदरणीया प्रतिभा जी. 

मैं आदरणीय रामबली जी के कहे से सहमत हूँ. बुद्धि की कुल मात्रा २+१ = ३ होगी. अतः उक्त चरण दोषयुक्त है. 

आदरणीय रामबली जी, समझाइश एक सही शब्द है. यह अवश्य है कि हिन्दी भाषा-भाषियों में यह शब्द बहुत प्रचलित शब्द नहीं है.

 

Comment by pratibha pande on July 21, 2016 at 8:04pm

  आदरणीय समर कबीर जी ,रचना पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार ..सादर 

Comment by Rahila on July 21, 2016 at 5:58pm
बहुत ही सुंदर आदरणीया दीदी!बेहद शानदार रचना हुयी ।खूब बधाई ।सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 21, 2016 at 5:27pm
सोच गरीबी से सटी, सदा नीच आचार
धर्म पड़ोसी कब रहा,उस मन का आधार
उस मन का आधार,करे हर हरकत खोटी
बार-बार आघात ,दिखे मंशा जो खोटी
उसको दें इक चोट,सही से समझे फिर वो
जैसा करता वार,सोचकर उसपर बरसो।

हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पांडे जी।

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