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बाँझ निवास (लघुकथा)राहिला

"अरी विभा देख जरा वहां"बस के आगे जा रहे वाहन की ओर इशारा करके सुधा बोली।

"क्या दिखाना चाह रही हो ,वो ट्रॉली?"

"हाँ,क्या ऐसा नहीं लग रहा उसे देख कर, जैसे सैकड़ो नन्हें मुन्ने नर्सरी के बच्चे पहली बार विद्यालय वाहन में सवार हो,झूमते ,गाते ,तालियाँ बजाते चले जा रहे हों।"

"फिर दौड़ाये तूने कल्पना के घोड़े"

"तो तू भी दौड़ाकर देख ,एक बार मेरी तरह।"

सुधा द्वारा चित्रित किये दृश्य को जब उसने ,उसकी नज़र से देखा तो भाव विभोर होकर बोली।

"कसम से सुधी! ये नर्सरी  वाहन में वृक्षारोपण के लिये जा रहे नन्हे पौधे ,हवा के साथ अठखेलियां करते वाकई मासूम बच्चों से लग रहे हैं।"

"बच्चे किसी के भी हों ,सुन्दर लगते हैं ना! एक जमाना था जब हर घर के आँगन या बाड़े में इन बच्चों से खूब रौनक हुआ करती  थी।"

"हाँ गाँव में तो अभी भी ग़नीमत है, लेकिन शहर में तो अब हर तरफ बाँझ निवास दिखाई देते हैं।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on July 11, 2016 at 1:17pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी!सादर नमन

Comment by Mahendra Kumar on July 11, 2016 at 9:36am
पर्यावरणीय चिंताओं पर प्रकाश डालती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी, सादर!
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:33am
बहुत, बहुत आभार आदरणीय विजय सर जी!आपको रचना सार्थक लगी मेरा लेखन सफल हुआ ।सादर नमन
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:31am
आदरणीय कबीर साहब!आदाब ,आपने रचना को अपना अमूल्य वक़्त दिया ,बहुत शुक्रिया सादर
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:28am
बहुत, शुक्रिया अशोक सर जी! आपको रचना पसंद आई ,मेरा लेखन सार्थक हुआ।सादर नमन
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:26am
बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी!रचना पर अपने बहुमूल्य विचार देने के लिए ।सादर
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:23am
बहुत, बहुत आभार आदरणीया नीता दीदी!आपको रचना पसंद आई ,बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:21am
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय दुबे सर जी!इतनी सुंदर टिप्पणी के लिए।सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2016 at 8:13pm
हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी! सुंदर लघुकथा !
Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:34pm

अच्छा संदेश देती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राहिला जी।

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