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जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं (ग़ज़ल)

बह्र : 1212 1122 1212 22

 

जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं

वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं

 

लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं

हमारे वास्ते क्या क्या किसान करते हैं

 

कभी मिली ही नहीं उन को मुहब्बत सच्ची

जो अपने हुस्न पे ज़्यादा गुमान करते हैं

 

गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे

यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं

 

जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?

नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते हैं

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 801

Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 17, 2016 at 8:16pm

जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते हैं

वाह आ. धर्मेंदर जी बहुत सुंदर ग़ज़ल .... सामाजिक सन्देश देती इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 16, 2016 at 12:28pm
बहुत सुंदर रचना
बधाई हो
Comment by narendrasinh chauhan on April 16, 2016 at 12:19pm

SUNDAR RACHNAA 

Comment by दिनेश कुमार on April 15, 2016 at 6:12pm
हर शेर बहुत उम्दा हुआ है आ.भाई जी। दिली दाद हाज़िर है। वाह वाह

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