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बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर  कूप के यारो  कभी बाहर नहीं होते ।1

समर्थन पाक  को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी  कश्मीर पर  इतने कड़े  तेवर नहीं होते।2

पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी  मासूम हाथो  में लिए  पत्थर  नहीं होते।3

बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर  तब छिपे भीतर नहीं होते।4

समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा  इस सियासत में  भरे जोकर नहीं होते।5

बताए राज रावण  के सभी वो राम को  चाहे
विभीषण देश के यारो  कभी जेवर  नहीं होते।6

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर ' 

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Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 10:11pm

बेहतरीन ग़ज़ल वाह्ह्ह आ० लक्ष्मण भैया , बहुत कुछ कह गई ग़ज़ल मगर सब सोलह आने सच कहा |दिल से दाद हाजिर है 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2016 at 3:09pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ..रचना के माध्यम से आपने यथार्थ के सन्दर्भों का बखूबी चित्रण किया है ..इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2016 at 10:37am

आ०  राहिला जी .आपके प्रशंसा भरे शब्दों ने मन में उत्साह भर दिया .आपको ग़ज़ल इतनी अच्छी लगी इसके लिए हार्दिक आभार .

Comment by Rahila on April 3, 2016 at 7:03pm
एक -एक शेर की विस्तार से तारीफ़ करने का दिल चाहा । क्या बेहतरीन रचा है आपने ग़ज़ल को । बहुत बधाई आदरणीय धामी सर जी! तारीफ के लिये शब्द बौने से लगे । सादर

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