For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुरीदों के जादुई चिराग़ - (लघुकथा) /कहानी /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (40)

गहरी नींद में सोये हुये इक्कीसवीं सदी के मानव को सपने में पता नहीं कहाँ से अलाउद्दीन का चिराग़ मिल गया। एकांत में घिस-घिस कर परेशान हो गया, चिराग़ काम नहीं कर रहा था, मानव निराश हो रहा था। ग़ुस्से में जैसे ही उसने ज़मीन पर पटका , अट्टाहास करता हुआ जिन्न प्रकट होकर बोला-
"क्या हुक़्म है आका ! "
पहले तो मानव औंधे मुंह गिरा, फिर संभलकर खड़े होकर उसने विशालकाय जिन्न से पूछा-
"क्क्क्कौन हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा ?"
"सतरंगी विकास ! सतरंगी विकास है नाम मेरा !"
मानव ने अपनी आँखें मलते हुए कहा- "ल्ल्ल्लेकिन तुम तो बड़े भयानक बदरंगे से लग रहे हो मुझे ! "
"मैं ग़ुलाम हूं आपका मेरे आक़ा, काम की बात कीजिए, आइ अम वेरी बिज़ी , यू नो ! सिर्फ और सिर्फ एक सेवा कर पाऊंगा मैं, फ़रमाइये क्या हुक़्म है आक़ा !"
"मतलब मेरा एक ही काम करोगे, तो क्या किसी और के लिए भी काम करते हो ?"
"जी सरकार, मैं कई रूपों में कई तरह से कई लोगों की सेवायें कर रहा हूँ, लेकिन अभी आपकी सेवा में हूँ, हुक़्म कीजिए मेरे आक़ा !"
मानव ने सकपकाते हुए कहा- "दम घुट रहा है मेरे भाई, फिर से वैसी ही धरती कर दो, वैसा ही पर्यावरण कर दो, वैसे ही जंगल, वनस्पति-पशु-पक्षी सुखमय कर दो जैसा अलाउद्दीन के समय था, बड़ी कृपा होगी !"
"मालिक का हुक़्म सर आँखों पर, लेकिन एक काम मेरे लिये आपको भी करना होगा बाद में ! गिव एंड टेक....लेन-देन का युग है न !"
"ओ.के."
जिन्न ने मानव को अपनी हथेली में उठाया और पलक झपकते ही मानव हरी-भरी धरती पर था, विशुद्ध पर्यावरण में बहुत ख़ुशहाल कीड़े-मकोड़ों, इल्लियों- तितलियों से लेकर सभी प्रसन्नचित वनस्पति-पशु-पक्षी, नर-नारी देखकर मानव को मानो जन्नत मिल गई !
"मालिक ख़ुश, तो ग़ुलाम ख़ुश ! आक़ा अब आप मेरा काम कर दीजिए !" - यह कहते हुये जिन्न ने फिर अट्टाहास किया और कहा- " चार-पाँच किस्म के लोगों की सेवा नहीं करना चाहता हूँ, उनकी ग़ुलामी से मुझे आज़ाद करा दो मेरे आक़ा !!
"वो कौन हैं, बताओ मुझे !"

"पहले ..धन और धनवान ! धन के मुरीद भ्रष्टाचार के उम्दा कारगर तरीक़े सोचते हैं। धनवान धनी होने और धन से 'तन-मन-सुख ' के नये-नये प्रयोग करते हैं मेरे आक़ा !"
"और दूसरे... सत्ता के मुरीद... 'फूट डालो राज़ करो', 'वोट, नोट और खोट' की राजनीति चलाने के नये-नये नुस्ख़े आजमाते रहते हैं मेरे मालिक !"
"और कौन ज़ल्दी बताओ !" मानव बेचैन हो रहा था।
"तीसरे... विश्व सत्ता के मुरीद ..राष्ट्रों पर शासन करने वाले विश्व पर सत्ता क़ायम करने के नये-नये आधार और फार्मूले आजमाते हैं ! दुनिया में राज करने के लिए धर्म प्रचार के मुरीद कभी धर्मांतरण के नाम, तो कभी धर्म के नाम ताक़त और आतंक , दम और बम, अहम और वहम से एक तरह का तम जग में फैलाकर दूसरी क़ौमों को अपनी राह पर चलाने के प्रयोग करते हैं ! मसाइल की मिसाइलें दागते हैं मेरे आक़ा !" - जिन्न अपनी गर्दन झुकाते हुए लगातार कहता गया-
"चौथे.... उद्योग और औद्योगिक विकास के मुरीद ...जन-कल्याण के नाम नये-नये उत्पादों और मशीनरी में उलझ कर जन-धन को उलझाते-सुलझाते रहते हैं , मालिक !"
"और पाँचवाँ कौन ?" - अत्यंत दुखी होकर मानव ने पूछा ।
"पाँचवें.....विज्ञान के मुरीद... वैज्ञानिक विज्ञान से इन्सान को मशीन और मशीन को इन्सान बनाने के फार्मूले खोज कर या बनाकर धरती से आकाश और आकाश से धरती नापते रहते हैं, अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार-मार कर धरती का शोषण कर , दुर्गत कर दूसरी धरती तलाश-तलाश कर मंगल पर मंगल-अमंगल करते रहते हैं मेरे मालिक ! वनस्पति-पशु-पक्षी के भक्षी सपनों में सिर्फ अपने मंगल की सोचते रहते हैं मेरे आक़ा!
मुझे इन सबके चंगुल से आज़ाद करा दो मेरे आक़ा !"
जिन्न को चिल्लाते , रोते देख और उसकी मांगों को सुनकर मानव के होश उड़ गये !
तभी वह जिन्न घुटने टेक कर मानव के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर बोला- " मैंने आपका काम किया, अब आपको मेरा काम करना है आक़ा , बोलो कर पाओगे ?"
मानव को पसीना आने लगा, घबराहट में हकलाते हुए बोला- "म्म्ममैं यह सब... इतना सब भला कैसे कर पाऊंगा ! मुझे माफ़ कर दो मेरे भाई !"
जिन्न फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया और दहाड़ कर बोला- " यही तो विडम्बना है ! इन्सान धरती और पर्यावरण के चिर यौवन की सोचे या अपने ही चिर यौवन का फार्मूला खोजे ?"
और फिर पलक झपकते ही जिन्न मानव को वापस उसी जगह उसी हाल में छोड़ कर ग़ायब हो गया।
सपना टूटते ही मानव ने करवट बदली तो धड़ाम से बिस्तर से नीचे गिरा । वह ज़मीन पर आ चुका था। सिरहाने अख़बार पड़ा हुआ था- न्यूज़ हैडलाइन थी - "मिल गया चिर यौवन का फार्मूला !"



(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 2694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2015 at 10:06pm
रचना पर उपस्थित हो कर टिप्पणी व सराहना करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीया ज्योत्सना कपिल जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:25pm
कल्पना कमाल की है आदरणीय उस्मानी जी।सार्थक सन्देश है आपकी कथा में।हार्दिक बधाई प्रेषित है।
Comment by Rahila on December 4, 2015 at 9:22pm
बहुत बढ़िया कल्पना और बेहतरीन पंच आदरणीय उस्मानी जी! बहुत बधाई आपको । सादर ।
Comment by Nita Kasar on December 4, 2015 at 9:07pm
चिर यौवन के फ़ार्मूले के चक्कर में मानव ने क्या क्या खोया जब वह विचार करेगा तो उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक जायेगी कितने निर्दोषों को मौत के घाट उतारा है आपका आज का जिन्न पढ़ा लिखा है इसलिये अंग्रेज़ी बोलता है तभी तो वह काम के एवज़ में आका से बदले में कुछ पाना चाहता है मेरे कहे का बुरा ना माने आद०सार्थक लें पंच लाईन क़ाबिले तारीफ़ है बधाई आद०शेख शहज़ाद भाई जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2015 at 7:28pm
रचना पर उपस्थित हो कर त्वरित प्रतिक्रिया देने व सराहना करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय कान्ता राय जी।
Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 5:20pm

चिर यौवन का फार्मूला ! ----- एक नया कांसेप्ट कथा में , बढ़िया है ये भी , इस जिन्न की भी यहां दाल नहीं गलने वाली है।  इंसानो ने अब उनका रूप भी धर लिया है। सुन्दर रचना हुई है।  बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
16 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service