For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत बरसों के बाद वह स्वयं को को बहुत ही हल्का हल्का महसूस कर रहा थाl न तो उसे सुबह जल्दी उठने की चिंता थी, न जिम जाने की हड़बड़ी और न ही अभ्यास सत्र में जाने की फ़िक्रl लगभग ढाई दशक तक अपने खेल के बेताज बादशाह रहे रॉबिन ने जब खेल से संन्यास की घोषणा की थी तो पूरे मीडिया ने उसकी प्रशंसा में क़सीदे पढ़े थेl समूचे खेल जगत से शुभकामनाओं के संदेश आए थेl कोई उस पर किताब लिखने की बात कर रहा था तो कोई वृत्तचित्र बनाने कीl उसकी उपलब्धियों पर गोष्ठियाँ की जा रही थींl किन्तु वह इन सबसे दूर एक शांत पहाड़ी इलाक़े में अपनी पत्नी के साथ छुट्टियाँ मनाने आया हुआ थाl इस शांत वातावरण में वह भी पक्षियों की भाँति चहचहा रहा थाl हर समय खेल, टीम, जीत के दबाव और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला रॉबिन प्राकृतिक नज़ारों में खो सा गया थाl

“देखो नंदा, ये पहाड़ और झरने कितने सुंदर लग रहे हैंl” 
“अरे! आप कब से प्रकृति प्रेमी हो गए?” 
“शुरू से ही हूँ जानूँl” 
“मगर कभी बताया तो नहीं अपने इस बारे मेंl” 
“ज़िंदगी की आपाधापी नें कभी समय ही नहीं दियाl” 
जवाब में नंदा केवल मुस्कुरा भर दी, फिर रॉबिन के चेहरे पर गंभीरता पसरती देख उसने उसने कहा,
“क्या सोच रहे हो?” 
“सोच रहा हूँ, क्यों न हम भी महानगर छोड़ कर यहीं आकर बस जाएँ?” नंदा का हाथ मज़बूती से थामते हुए कहाl
“मगर हम करेंगे क्या यहाँ?” नंदा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए थेl
“थोड़ी सी ज़मीन ख़रीदेंगे और उस पर फूलों की खेती करेंगेl” 
“और आपको जो चीफ सेलेक्टर की जॉब ऑफर हुई है, उसका क्या होगा?” 
“मैं उनको साफ़ मना कर दूँगाl” 
“ऐसा सुनहरी मौक़ा हाथ से जाने देंगे? मगर क्यों?” 
नंदा का चेहरा अपने दोनो हाथों में भरते हुए रॉबिन ने जवाब दिया,
“आज पहली बार गौर किया नंदा क़ि तुम कितनी ख़ूबसूरत होl”

.

 (मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 816

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on October 28, 2015 at 5:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज जी,एक खूबसूरत  लघुकथा के माध्यम से आपने एक उत्तम संदेश दिया है कि मनुष्य को जीवन भर महत्वाकांक्षाओं और धन के पीछे नहीं भागते रहना चाहिये!जीवन के कुछ पल अपने प्रियजनों और परिवार के लिये भी संजो कर रखने चाहिये!इस लघुकथा को पढ कर मन प्रफ़ुल्लित हो गया!पुनः बधाई!

Comment by kanta roy on October 28, 2015 at 4:47pm

वाह ! बहुत खूब ! कई दिनों बाद एक सार्थक लघुकथा पड़ने का अवसर हमें आज मिला।
जिंदगी को कसकर पकड़ने में हम जिंदगी से ही कब दूर हो जाते है इसका एहसास ही नहीं होता है।

आगे दौड़ने की जद्दोजहद हमारे सभी सुखों के पल से हमें दूर कर देती है। संन्यास मन को ठहराव देता है और सहसा अपने चारो तरफ सकूँ ही सकूँ का एहसास भी। लक्ष्य की और दौर हमें अपने आप से कितना काट देती है ये आपकी इस कथा को पढ़ने के बाद आत्मचिंतन को विवस हुई।

ये कथा है आपने आपको जानने की ,कि आपको सच में क्या चाहिए होता है , कौन सा सुख सच्चा सुख है , इस पर हम जरूर विचार करें।

एक सन्देश की हम अपनी कसी हुई मुठ्ठी को जरा खोलकर देखे कितनी सहज ये जिंदगी लगती है।

//"आज पहली बार गौर किया नंदा की तुम कितनी खूबसूरत हो."//-----बेहद शानदार और सकारात्मक पंच को लिए हुए ये कथा अनुपम हुई है।

शत -शत नमन सर जी आपको इस सार्थक कृति के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service