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ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212


कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन
इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन

उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है
मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन

बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ
मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन

एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल
फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन

प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है
वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे उन

फैसले सारे फिर उसके बाद ही लिखे गए
ज़िन्दगी में वेदना का इश्क़ था पहला शगुन

शाइरी में इस तरह का भी कोई कानून हो
काफियों की हो कमी तो खून को लिख डाले खुन

जाने कैसे सामना हो तेरा और"अहसास"का
तू नियंता मैं अधीना अवगुणी मै तू अगुन


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 28, 2015 at 5:59pm
अहसास साहब आपका हर शेर बोलता हुआ कठिन काफिये का निर्वहन करता हुआ है। वाह आनन्द आगया। बधाई।
Comment by मनोज अहसास on October 28, 2015 at 7:26am
शुक्रिया
आदरणिय नीर जी
सादर
Comment by Neeraj Neer on October 27, 2015 at 10:29pm

बहुत खूब भाई मनोज जी 

Comment by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 9:34pm
बहुत शुक्रिया भाई बैजनाथ जी
सादर
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 27, 2015 at 9:31pm

मनोज 'अहसास'जी 

अति सुन्दर रचना| ................. बधाई| 

शाइरी में इस तरह का भी कोई कानून हो
काफियों की हो कमी तो खून को लिख डाले खुन.........  वाह !!!!  तंग काफिए  को भी आपने क्या खूब निभाया है..... वाह ..वाह !!!

Comment by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 9:29pm
बहुत शुक्रिया
आदरणीय भाई दिनेश जी
सादर
Comment by दिनेश कुमार on October 27, 2015 at 8:53pm
इस्लाह तो गुरुजन करेंगे भाई मनोज जी।
ग़ज़ल बहुत खूब लगी । वाह वाह। ख़ास तौर पर दो तीन मिसरे बहुत भाये।
फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन...
ज़िन्दगी में वेदना का इश्क़ था पहला शगुन....
काफियों की हो कमी तो खून को लिख डाले खुन....वाह वाह
Comment by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 8:47pm
प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है
वो न मेरा नाम लेती (है) कहती है बस मेरे उन

इसमें मिसरे में है ज्यादा लग गया टाइप।की गलती से
निवेदन है इसे हटा कर पढ़ा जाये

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